Explainer: स्थिर रेवेन्यू, लेकिन बढ़ते कर्ज और खर्च के कारण वित्तीय संकट की चपेट में आया हिमाचल प्रदेश!
गौरतलब है कि राज्य का कुल कर्ज 2018 में करीब 48 हजार करोड़ रुपये था, जो 2020-21 में बढ़कर 60,003 करोड़ रुपये, 2021-22 में 63,736 करोड़ रुपये और 2022-23 में बढ़कर 76,651 करोड़ रुपये हो गया। बजट 2024-25 के मुताबिक, 2023-24 के संसोधित अनुमान के मुताबिक राज्य का कुल कर्ज 87,788 करोड़ रुपये रहा, जिसके 2024-25 में बढ़कर 96,568 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
- By: Abhishek Parashar
- Published: Sep 16, 2024 at 03:55 PM
- Updated: Sep 23, 2024 at 12:55 PM
नई दिल्ली (अभिषेक पराशर)। ‘स्विंग स्टेट’ के नाम से मशहूर पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश 2022 में सुर्खियों में रहा, जब उस साल हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सत्ता भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के हाथ से निकलकर कांग्रेस के हाथ में चली गई और राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुख्यमंत्री की शपथ ली। इसके बाद 2024 में हिमाचल प्रदेश उस वक्त सार्वजनिक चर्चा और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के केंद्र में रहा, जब राज्य में वित्तीय संकट की स्थिति गहराने लगी।
राज्य में गंभीर होती आर्थिक स्थिति की चुनौती से निपटने के लिए सरकार ने कर्मचारियों के वेतन और पेंशन की तारीख में बदलाव किए जाने की घोषणा की। बदलाव के बाद अब राज्य सरकार के कर्मचारियों को उनका वेतन हर महीने की पांच तारीख को और सेवानिवृत्ति हो चुके कर्मचारियों को उनके पेंशन का भुगतान हर महीने की 10 तारीख को किया जाएगा। गौरतलब है कि यह उन कई फैसलों में से एक था, जिसकी घोषणा राज्य सरकार ने अपनी आर्थिक व माली हालत को सुधारने की दिशा में की है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भुगतान की तारीख में किया गया यह बदलाव राजस्व प्रवाह के मुताबिक खर्च को व्यवस्थित करने की कोशिश का हिस्सा था, क्योंकि राज्य को हर महीने की छठी तारीख को केंद्र सरकार से राजस्व घाटा अनुदान के तौर पर 520 करोड़ रुपये और हर महीने की 10 तारीख को केंद्रीय कर में से 740 करोड़ रुपये मिलते हैं।
राजस्व घाटा अनुदान का संबंध राजस्व घाटे की भरपाई से है। यानी अगर कोई सरकार राजस्व घाटे की स्थिति में है (राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटे के बीच के फर्क को बताते इस एक्सप्लेनर को देखें), तो यह माना जाता है कि उसी आय उसके आधारभूत या जरूरी खर्चों को पूरा करने की स्थिति में नहीं है और ऐसी स्थिति में सरकार या तो कर्ज लेती है या फिर अपनी मौजूदा परिसंपत्तियों को बेचती है, जिसे विनिवेश कहा जाता है। राजस्व घाटे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार टैक्स में इजाफा कर सकती है या फिर अपने खर्चों में कटौती कर सकती है।
आगे बढ़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि हिमाचल प्रदेश के राजस्व के स्रोतों और खर्च की स्थिति क्या है। इन्हें नीचे दर्शाए गए दो ग्राफ के जरिए समझा सकता है।
इस ग्राफ को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य की अनुमानित आय में केंद्रीय शुल्कों, राज्य कर और सहाय अनुदान की बड़ी भूमिका है।
वहीं खर्च के अनुमानित आंकड़ों को देखकर यह समझा जा सकता है कि राज्य की कुल आय का बड़ा हिस्सा सामान्य सेवाओं और सामाजिक सेवाओं पर खर्च हो रहा है।
बढ़ता वित्तीय बोझ
वित्त वर्ष 2024-25 में राज्य का कुल कर्ज 2024-25 में जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट) के 37 फीसदी से बढ़कर 42.5 फीसदी होने का अनुमान है। वहीं, राज्य का राजकोषीय घाटा (देखें एक्सप्लेनर) वित्त वर्ष 22 के 3 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 23 में 6.5 फीसदी हो चुका है। वित्त वर्ष 24 में यह घाटा 5.9 फीसदी रहा, जिसके वित्त वर्ष 25 में घटकर 4.7 फीसदी रहने का अनुमान है।
हिमाचल प्रदेश के 2024-25 के बजट के मुताबिक,राज्य की कुल आय 56,439.74 करोड़ रुपये, जबकि 58,443.61 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। वर्ष 2024-25 में राजस्व घाटा 4,513.55 करोड़ रुपये जबकि राजकोषीय घाटा के 10,783.87 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वहीं राजस्व खर्च 46,666.63 करोड़ रुपये, जबकि पूंजीगतखर्च 6,269.68 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है।
आसान शब्दों में समझें तो राजकोषीय घाटा सरकार की तरफ से आय के मुकाबले ज्यादा किया गया खर्च है। वहीं राजस्व घाटा अनुमानित आय और वास्तविक आय के बीच का अंतर है।
वहीं, 2024-25 में राज्य की जीएसडीपी के मुकाबले राजस्व घाटा 2 फीसदी (4,513 करोड़ रुपये) रहने की उम्मीद है, जो वित्त वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान (जीएसडीपी का 2.6 फीसदी) के मुकाबले कम है। बताते चलें कि 2022-23 में घाटा कुल जीएसडीपी का 3.3% रहा था।
वहीं 2024-25 में जीएसडीपी के मुकाबले लिए राजकोषीय घाटा के 4.7% (10,784 करोड़ रुपये)रहने का अनुमान है, जो 2023-24 के संसोधित अनुमान (जीएसडीपी का 5.9%) के मुकाबले कम है। बताते चलें कि 2022-23 में राज्य का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के मुकाबले 6.5 फीसदी रहा था।
राजस्व खर्च में वृद्धि Vs पूंजीगत खर्च में कमी
हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति को समझने के लिए पिछले तीन वित्त वर्ष के दो महत्वपूर्ण आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है, जिसका जिक्र ऊपर भी किया गया है। ये दो महत्वपूर्ण आंकड़ें हैं, राजस्व खर्च और पूंजीगत खर्च।
राजस्व खर्च का मतलब उन खर्च से है, जिसमें वेतन, पेंशन, कर्ज का ब्याज भुगतान, अनुदान और सब्सिडी खर्च से है।
वहीं, पूंजीगत खर्च का संबंध उनक खर्चों से है, जिससे असेट्स का निर्माण होता है, और भविष्य में कमाई सुनिश्चित होती है।
पीआरएस के विश्लेषण के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले वित्त वर्ष 24-25 में राज्य के राजस्व खर्च में 2 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है, वहीं पूंजीगत खर्च के मामले में वित्त वर्ष 2023-24 (RE) के मुकाबले 2024-25 में 8 फीसदी की कमी आई है।
हिमाचल प्रदेश के 2023-24 के बजट का पीआरएस के विश्लेषण के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के योगदान आधारित नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) से हटने और ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) पर वापस लौटने का फैसला कुछ निश्चित फायदों के साथ आता है । यदि कोई राज्य ओपीएस बहाल करता है, तो उसे तत्काल वित्तीय चुनौती की स्थिति का सामना नहीं करना होता है, क्योंकि नियर टर्म में कुल पेंशन खर्च में कमी आ सकती है, क्योंकि एनपीएस के लिए सरकारी योगदान का भुगतान करने की जरूरत खत्म हो जाती है।”
वहीं, “जब एनपीएस को लागू करने के बाद शामिल हुए कर्मचारी 2034-35 के बाद सेवानिवृत्त होने लगेंगे, तो ओपीएस में वापस लौटने की लागत में इजाफा होगा। 2022-23 में, अन्य राज्यों के मुकाबले हिमाचल प्रदेश में कुल राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों पर सबसे अधिक खर्च (21%) हुआ।”
पीआरएस के हिमाचल प्रदेश के 2024-25 के बजट एनालिसिस के मुताबिक, “2023-24 में, हिमाचल प्रदेश को अपनी राजस्व प्राप्तियों का 21% पेंशन भुगतान पर खर्च करने का अनुमान है जो सभी राज्यों में सबसे अधिक है। 2024-25 में इसके बढ़कर 24% होने का अनुमान है। 2023 में, हिमाचल प्रदेश ने एनपीएस को खत्म करते हुए ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लागू किए जाने का फैसला किया।”
गौरतलब है कि 2023-24 में राजस्व खर्च 42,704 करोड़ रुपये रहने का अनुमान था, जो 2022-23 के संसोधित अनुमान से 5% कम था, जबकि पूंजीगत खर्च के 2023-24 में 5,202 करोड़ रुपये रहने का अनुमान था, जो 2022-23 के संसोधित अनुमान से 18 फीसदी कम था।
कमिटेड एक्सपेंडीचर: पेंशन खर्च में इजाफा
कमिटेड एक्सपेंडीचर यानी तय खर्चों में वेतन, पेंशन और ब्याज शामिल होता है। अगर कोई राज्य इस मद में ज्यादा खर्च कर रहा है, तो अन्य खर्च प्राथमिकताएं मसलन पूंजीगत खर्च में उसे कटौती करनी होती है।
2024-25 में हिमाचल में इस मद में कुल 33,463 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है, जो अनुमानित राजस्व आय का 79% है। अगर इसे आंकड़ों में देखें तो वेतन (कुल राजस्व आय का 41%), पेंशन (24%) और ब्याज भुगतान (15%) है। पीआरएस के विश्लेषण के मुताबिक, “2023-24 में पेंशन पर बजटीय अनुमान के मुकाबले 4% ज्यादा खर्च का अनुमान है।” 2022-23 में कुल राजस्व आय का 79 फीसदी हिस्सा कमिटेड एक्सपेंडीचर के मद में खर्च हुआ।
17 मार्च 2023 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पेश किए गए दस्तावेज में भी इसका जिक्र है, जिसके मुताबिक, “वेतन तथा पेंशन प्रतिबद्ध दायित्व है, जिसमें प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। अतिरिक्त दायित्व/वेतन और पेंशन के हाल के संशोधन का एरियर यानी पिछला बकाया करीब 9000 करोड़ रुपये है, जो अतिरिक्त राजकोषीय बोझ होगा।”
वित्तीय सेहत को प्रभावित करने वाले मौजूदा और संभावित कारक
17 मार्च 2023 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पेश किए गए दस्तावेज में राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति को प्रभावित करने वाले मौजूदा और संभावित आर्थिक कारणों का विस्तार से जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया कि कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभावित किया, जिससे राज्य के वित्त पर असर पड़ा। हालांकि, अब राज्य की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, लेकिन राज्य का टैक्स बेस सीमित होने की वजह से आने वाले वर्षों में केंद्रीय अनुदानों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
2021-26 के लिए 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-26 के बीच केंद्रीय करों या सेंट्रल टैक्सेज में राज्यों की हिस्सेदारी 2020-21 के समान ही 41% रखने की सिफारिश की गई है। यह 2015-20 के लिए गठित वित्त आयोग की 42% की सिफारिश के मुकाबले कम है। 1% रकम को नव गठित केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के लिए रखा गया है।
वित्त आयोग केंद्रीय करों को राज्यों के बीच बांटे जाने के लिए छह फैक्टर्स आधारित फॉर्मूले का इस्तेमाल करता है, जिसमें आबादी, क्षेत्रफल समेत अन्य कारक मौजूद होते हैं। इन फैक्टर्स में डेमोग्राफिक परफॉर्मेंस का वजन 12.5 फीसदी है।
इसी फॉर्मूले के आधार पर केंद्रीय करों में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी 0.830% तय की गई है।
हिमाचल प्रदेश को 2021-26 के दौरान राजस्व घाटा अनुदान के रूप में 37,199 करोड़ रुपये मिलेंगे। यह वही अनुदान है, जिसका भुगतान हर महीने की छठी तारीख को 520 करोड़ रुपये की किस्त के तौर पर हिमाचल प्रदेश को मिल रहा है। इसके अलावा स्थानीय निकायों को 3,049 करोड़ रुपये और आपदा प्रबंधन के लिए पांच वर्षों के दौरान 2,258 करोड़ रुपये मिलेंगे।
घाटा और 2024-25 के लिए FRBM लक्ष्य
हिमाचल प्रदेश फिस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट, 2005 के तहत राज्य को एक तय सीमा के भीतर घाटे को रखना होता है। 2024-25 में राजकोषीय घाटे के जीएसडीपी का 4.7 फीसदी रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को उनका कुल घाटा उनकी जीएसडीपी के मुकाबले 3% तक रखने का आदेश दिया है। पावर सेक्टर आधारित रिफॉर्म्स के लिए राज्यों को इसमें अतिरिक्त 0.5 फीसदी की छूट दी गई है।
2023-24 के संशोधित अनुमान के मुताबिक, राज्य का घाटा जीएसडीपी के मुकाबले 5.9 फीसदी रहने का अनुमान है, जो बजटीय अनुमान से अधिक है।
गौरतलब है कि राज्य का कुल कर्ज 2018 में करीब 48 हजार करोड़ रुपये था, जो 2020-21 में बढ़कर 60,003 करोड़ रुपये, 2021-22 में 63,736 करोड़ रुपये और 2022-23 में बढ़कर 76,651 करोड़ रुपये हो गया। बजट 2024-25 के मुताबिक, 2023-24 के संसोधित अनुमान के मुताबिक राज्य का कुल कर्ज 87,788 करोड़ रुपये रहा, जिसके 2024-25 में बढ़कर 96,568 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने विधानसभा को बताया कि वित्त वर्ष 2023-24 के लिए राजस्व घाटा अनुदान को घटाकर 1800 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सुक्खू ने इस बात की भी आशंका जताई कि वित्त वर्ष 2025-26 के लिए राजस्व घाटा अनुदान को घटाकर 3,257 करोड़ रुपये किया जा सकता है, जिससे राज्य को अतिरिक्त 3,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ेगा। वहीं, एक अन्य घटनाक्रम में केंद्र सरकार ने राज्य की कर्ज लेने की सीमा को घटाकर 5,500 करोड़ रुपये कर दिया है। राज्य सरकार पहले 14,500 रुपये कर्ज जुटा सकती थी, जिसे केंद्र ने अब सीमित कर 9000 करोड़ रुपये कर दिया है।
कुल मिलाकर स्थिर राजस्व या रेवेन्यू के मुकाबले बढ़ते कर्ज बोझ और राजस्व खर्च (सैलरी और पेंशन पर होने वाला खर्च), केंद्रीय अनुदान में कमी के साथ ओल्ड पेंशन स्कीम की वापसी, अत्यधिक सब्सिडी बोझ जैसे फैक्टर्स की वजह से हिमाचल में वित्तीय संकट की स्थिति उत्पन्न हुई।
गौरतलब है कि 2024-25 के बजट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में राज्य की जीएसडीपी की वृद्धि दर 9.5% रहने का अनुमान है। वित्त वर्ष 2022-23 में राज्य की जीएसडीपी 2021-22 के 7.6% फीसदी के मुकाबले 6.4 फीसदी रही थी। देश की जीडीपी दर से तुलना करें तो 2022-23 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी रही थी।
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