Explainer: उदारीकरण के बाद आगे निकले दक्षिणी व पश्चिम भारतीय राज्य, पिछड़े पूर्वी राज्य: EAC-PM रिपोर्ट

PM-EAC की 1960-61 से 2023-24 के बीच राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन की तुलनात्मक अध्ययन के मुताबिक, राष्ट्रीय जीडीपी में योगदान और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी समेत दोनों स्तरों पर पश्चिम और दक्षिण भारतीय राज्यों का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले शानदार रहा है। वहीं, पूर्वी भारत के राज्यों का प्रदर्शन चिंताजनक स्थिति की तरफ इशारा कर रहा है। पश्चिम बंगाल के अपवाद के तौर पर समुद्री  राज्यों का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले मजबूत रहा है। वहीं, अन्य तटीय राज्य ओडिशा, जो पारंपरिक रूप से पिछड़ा राज्य रहा है, पिछले दो दशकों में उसके प्रदर्शन में व्यापक सुधार देखने को मिला है।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बतौर वित्त मंत्री 24 जुलाई 1991 को बजट पेश किया था, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के नए अध्याय की शुरुआत की। 1991 का यह बजट उस वक्त पेश किया गया, जब देश गंभीर आर्थिक स्थिति में था और 1990-91 में देश का राजकोषीय घाटा (सरकार की कुल राजस्व आय और खर्च के बीच का अंतर) 8 % से अधिक होने का अनुमान था, जो 1980 की शुरुआत में 6% और 1970 के मध्य में करीब 4% के स्तर पर था।

ऐसी कठिन और चुनौतीपूर्ण आर्थिक संकट की स्थिति में बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री सिंह ने कहा,”इस घाटे (राजकोषीय) की स्थिति को कर्ज लेकर पूरा किया गया और इस वजह से केंद्र सरकार का आंतरिक सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के मुकाबले बढ़कर करीब 55  फीसदी के स्तर पर पहुंच गया, जिसका भुगतान करना अब भारी पड़ रहा है। ब्याज भुगतान कुल जीडीपी का करीब 4 फीसदी और केंद्र सरकार के कुल खर्च का करीब 20 फीसदी है।”

साथ ही भुगतान संकट की समस्या गंभीर रूप ले चुकी थी और मौजूदा विदेशी मु्द्रा भंडार करीब 2500 करोड़ रुपये का था, जिससे महज दो हफ्ते के आयात बिल का भुगतान किया जा सकता था। इन आंकड़ों को पेश करते हुए सिंह ने कहा कि यह वक्त निर्णायक कार्रवाई का है और ऐसा नहीं किया गया तो स्थिति हमारे हाथ से निकल जाएगी। और फिर इंडस्ट्रियल डिलाइसेंसिंग, विदेशी निवेश की मंजूरी, सार्वजनिक क्षेत्र का विनिवेश समेत कई सुधार उपायों की घोषणा की गई, जिसने भारत की आर्थिक वृद्धि दर को गति दी।

24 जुलाई 1991 को संसद में पेश बजट (1991-91) के दौरान तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की तरफ से दिया गया भाषण, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर अब निर्णायक फैसले नहीं लिए गए तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। Source- indiabudget.gov.in)। पूरी बजट स्पीच को यहां पढ़ा जा सकता है।

हाल ही में विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को संशोधित करते हुए 6.6 फीसदी से 7 फीसदी कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अनुमान को 7 फीसदी से बढ़ाकर 7.2 फीसदी  कर दिया है।

ग्लोबल इनवेस्टमेंट मैनेजर ब्लैकरॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, “भारतीय अर्थव्यवस्था 2027 तक जापान और जर्मनी को छोड़ते हुए दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।” 2022 से 2025 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी गति के साथ बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है।

ग्लोबल इनवेस्टमेंट मैनेजर ब्लैकरॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है और यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है। Source-blackrock.com

90 के दशक के उदारीकरण ने जिस ग्रोथ की बुनियाद रखी, उसकी गति आज भी जारी है और इसका लाभ राज्यों की अर्थव्यवस्था को भी मिला, जिन्होंने समग्र तौर पर देश की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट या सकल घरेलू उत्पाद) को गति दी।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की वर्किंग पेपर सीरीज के तहत हालिया प्रकाशित रिपोर्ट “रिलेटिव इकोनॉमिक  परफॉर्मेंस ऑफ इंडियन स्टेट्स: 1960-61 to 2023-24” आजादी के बाद से भारत की जीडीपी में राज्यों के योगदान और औसत राष्ट्रीय आय के मुकाबले प्रति व्यक्ति आय के आधार पर राज्यों की इकोनॉमिक ग्रोथ के ट्रेंड्स का अध्ययन किया है।

उदारीकरण के बाद दक्षिणी राज्यों को मिली बढ़त

इस रिपोर्ट (1960-61 से 2023-24) के मुताबिक, 1991 के आर्थिक उदारीकरण के पहले दक्षिणी राज्यों का आर्थिक प्रदर्शन बेहतर नहीं था, लेकिन 91 के आर्थिक उदारीकरण के बाद देश की कुल जीडीपी में दक्षिणी राज्यों की भूमिका अन्य राज्यों के मुकाबले अग्रणी है।

2023-24 में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु की भारत के कुल जीडीपी में करीब 30% से अधिक का योगदान रहा। पश्चिमी राज्यों में देखें तो महाराष्ट्र और गुजरात का राष्ट्रीय जीडीपी में पूरी अवधि (1960-61/2023-24) के दौरान मजबूत योगदान रहा। 2000-01 तक गुजरात की हिस्सेदारी समान स्तर पर रही लेकिन 2000-01 के बाद इसमें तेजी से इजाफा हुआ और यह 6.4% के स्तर से बढ़कर 2022-23 में बढ़कर 8.1 फीसदी हो गया।

उत्तरी राज्यों में देखें तो दिल्ली और हरियाणा का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा, वहीं पंजाब की अर्थव्यवस्था में 1991 के बाद गिरावट की स्थिति दर्ज की गई। छोटा राज्य होने के बावजूद देश की जीडीपी में दिल्ली की हिस्सेदारी इस अवधि में 1.4% से बढ़कर 3.1% हो गई।

हरित क्रांति की वजह से 1960 के दौरान देश की जीडीपी में पंजाब की हिस्सेदारी में इजाफा हुआ, लेकिन यह 1990-91 के दौरान कम होकर 4.3फीसदी के स्तर पर आ गया और आगे भी इसमें गिरावट आई और 2023-24 में देश की जीडीपी में पंजाब की हिस्सेदारी कम होकर 2.4% के स्तर पर आ गई। वहीं, हरियाणा जो शुरुआत में पंजाब के पीछे था, अब उसकी जीडीपी में हिस्सेदारी पंजाब से अधिक है।

पूर्वी राज्य (राष्ट्रीय GDP में बंगाल की लगातार घटती हिस्सेदारी)

1960-61 में पश्चिम बंगाल 10.5 फीसदी के साथ राष्ट्रीय जीडीपी में तीसरा बड़ा योगदान करने वाला राज्य था, जो 2023-24 में घटकर महज 5.6% हो चुका है।  रिपोर्ट बताती है कि पश्चिम बंगाल की राष्ट्रीय जीडीपी में हिस्सेदारी में लगातार (1960-61 से 2023-24 के बीच) गिरावट आई है और इस वजह से राज्य के प्रति व्यक्ति आय में भी कमी देखने को मिली है।

1960-61 में पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 127.5% थी, जो 2023-24 में  घटकर 83.7% हो चुका है और अब इस राज्य की प्रति व्यक्ति आय पारंपरिक पिछड़े राज्यों राजस्थान और ओड़िशा से भी नीचे जा चुका है।

वहीं, बिहार के संदर्भ में देखें तो 1960-61 में बिहार (अविभाजित) की प्रति व्यक्ति आय (औसत राष्ट्रीय आय के मुकाबले) 70.3% थी, जिसमें लगातार गिरावट आई और बिहार के विभाजित होने के बाद 2000-01 में यह करीब 31 फीसदी के स्तर पर आ गया, जो अब करीब 33 फीसदी के स्तर पर बना हुआ है। वहीं ओडिशा, जहां प्रति व्यक्ति आय में  1960 से 1990-91 के बीच (70.9% से 54.3%)लगातार गिरावट की स्थिति थी, उसकी स्थिति में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है।  

1990-91 में औसत राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय 54.3 फीसदी थी, जो 2023-24 में बढ़कर 88.5% हो चुका है।

मध्य भारत के राज्य (GDP में हिस्सेदारी Vs प्रति व्यक्ति आय)

1960 के दशक में अविभाजित उत्तर प्रदेश देश की अर्थव्यवस्था का पावरहाउस था, जिसकी 1960-61 में राष्ट्रीय जीडीपी में 14.4% की हिस्सेदारी थी। हालांकि, यह वर्चस्व कायम नहीं रहा और राज्य के बंटवारे के बाद भी इसमें गिरावट की स्थिति जारी रही। 2020-21 में उत्तर प्रदेश (विभाजित) की राष्ट्रीय जीडीपी में हिस्सेदारी करीब 8.2 फीसदी रही, जो 2023-24 में मामूली रूप से बढ़कर 8.4% हो गई। यही स्थिति प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी रही।

वहीं, पांच दशकों की गिरावट (1960-61 में 82.4% से घकर 2010-11 में 60.1%) के बाद 2010 के बाद से मध्य प्रदेश के प्रति व्यक्ति आय में शानदार उछाल देखने को मिला। राज्य की प्रति व्यक्ति आय 2010-11 के 60.1% से बढ़कर 2023-24 में 77.4 फीसदी हो गई।

पूर्वोत्तर राज्य (GDP में हिस्सेदारी Vs प्रति व्यक्ति आय)

रिपोर्ट के मुताबिक, 1980-81 में सिक्किम की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम थी, लेकिन पिछले दो दशकों के दौरान इसमें जबरदस्त सुधार आया है। 2000-01 में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले इसकी प्रति व्यक्ति आय करीब 100 फीसदी रही, जो 223-24 में बढ़कर 320 फीसदी हो गई।

वहीं असम, जिसकी शुरुआती प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय आय से थोड़ी ज्यादा (1960-61 में 103 फीसदी) थी, 2010-11 में घटकर 61.12 फीसदी हो गई। इसके बाद से इसमें इजाफा हुआ और 2023-24 में औसत प्रति व्यक्ति आय के मुकाबले असम की प्रति व्यक्ति आय 73.7% है।

दक्षिणी राज्यों में प्रति व्यक्ति आय में इजाफा

उदारीकरण के बाद न केवल दक्षिणी राज्यों का योगदान राष्ट्रीय जीडीपी में सर्वाधिक है, बल्कि 1991 के बाद से सभी दक्षिणी राज्यों की प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत से ऊपर है। तेलंगाना में राष्ट्रीय औसत के मुकाबले प्रति व्यक्ति आय 193.6 फीसदी है, वहीं  कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में प्रति व्यक्ति आय क्रमश: 181 फीसदी, 171 फीसदी और 152.5 फीसदी है।

रिपोर्ट के आधार पर देखें तो 2023-24 में इस आधार पर सर्वाधिक धनी राज्य दिल्ली रहा, जहां प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 250 फीसदी रही।

रिपोर्ट के आधार पर देखें तो 2023-24 में इस आधार पर सर्वाधिक धनी राज्य दिल्ली रहा, जहां प्रति व्यक्ति आय, राष्ट्रीय औसत के मुकाबले 250 फीसदी रही।

रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय जीडीपी में योगदान और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी समेत दोनों स्तरों पर पश्चिम और दक्षिण भारतीय राज्यों का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले शानदार रहा है। वहीं, पूर्वी भारत के राज्यों का प्रदर्शन चिंताजनक स्थिति की तरफ इशारा कर रहा है। पश्चिम बंगाल के अपवाद के तौर पर समुद्री  राज्यों का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले मजबूत रहा है। वहीं, अन्य तटीय राज्य ओडिशा, जो पारंपरिक रूप से पिछड़ा राज्य रहा है, पिछले दो दशकों में उसके प्रदर्शन में व्यापक सुधार देखने को मिला है।

कुल मिलाकर दक्षिणी और पश्चिम राज्यों का देश के अन्य राज्यों के मुकाबले प्रदर्शन शानदार रहा है। महाराष्ट्र और गुजरात का प्रदर्शन मजबूत और स्थिर रहा है, वहीं अध्ययन में शामिल अवधि के दौरान गोवा की प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई। उत्तर भारतीय राज्यों में दिल्ली और हरियाणा का प्रदर्शन शानदार रहा है और दिल्ली प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से शीर्ष पायदान पर काबिज है। वहीं, पूर्वी राज्यों की स्थिति चिंताजनक है।

पिछले कई दशकों से पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था में गिरावट की स्थिति है, वहीं पिछले दो दशकों के दौरान बिहार की स्थिति स्थिर है लेकिन इसके बावजूद यह अन्य कई राज्यों से पीछे है। समग्र तौर पर देखें तो पश्चिम बंगाल को छोड़कर तटीय राज्य का प्रदर्शन अन्य राज्यों के मुकाबले शानदार रहा है।

2024-25 के बजट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में बंगाल की GSDP ग्रोथ रेट 10.5% (18.8 लाख करोड़ रुपये), बिहार की जीएसडीपी ग्रोथ रेट 13.5% (9.76 लाख करोड़ रुपये) और ओडिशा की जीएसडीपी ग्रोथ रेट 11.2% (9.26 लाख करोड़ रुपये) रहने का अनुमान है।

हालिया हिमाचल वित्तीय संकट को विस्तार से समझाती एक्सप्लेनर के साथ अर्थव्यवस्था और बिजनेस से संबंधित अन्य एक्सप्लेनर रिपोर्ट्स को यहां पढ़ा जा सकता है।

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