X
X

Explainer : हर साल प्रतिबंध के बावजूद दिवाली पर बिगड़ जाती है दिल्ली की हवा

दशहरे के बाद दिल्ली की हवा मध्यम से खराब क्षेणी में आ गई है। दिवाली पर इसकी स्थिति और खराब हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों को देखें तो प्रतिबंधों के बावजूद दिवाली की हवा खराब स्थिति में पहुंच गई थी।

Air Pollution in delhi before and after delhi

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। दिल्ली की हवा दशहरे से पहले मॉडरेट या ये कहें कि मध्यम श्रेणी में थी, लेकिन इसके बाद इसकी स्थिति बिगड़ गई। 14 अक्टूबर को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 234 था, जो 12 अक्टूबर को दशहरे वाले दिन 155 था। दिवाली तक इसका स्तर और बिगड़ने लगता है। इसकी वजह पटाखें भी होते हैं। हर साल पटाखों पर पाबंदी के बावजूद दिवाली की रात धूम-धड़ाके का धुआं होता ही है।

पिछले कुछ वर्षों में दिवाली पर दिल्ली की स्थिति

अगर पिछले कुछ साल के दिवाली से पहले और उसके बाद के एक्यूआई के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चल जाता है कि नियमों की कैसे धज्जियां उड़ी थीं। हमने 2018 से 2023 तक दिवाली से पहले और उसके बाद के एक्यूआई पर नजर डाली। 2018 में दिवाली से पहले एक्यूआई 338 था, जो दिवाली के दिन 281 और दिवाली के बाद 390 पर पहुंच गया। इसी तरह 2019 में दिवाली से पहले एक्यूआई 287 था, जो दीपावली के दिन 337 और बाद में 368 हो गया था।

2020 में कोरोना काल के दौरान लॉकडाउन भी लगा था, लेकिन दीपोत्सव पर हवा की स्थिति गंभीर हो गई थी। दिवाली से पहले एक्यूआई 339 था, जो पर्व के दिन 400 के पार होकर 414 पहुंच गया और दिवाली के बाद 435 पर था। यह गंभीर श्रेणी में आता है। 2021 में भी दिवाली के बाद हवा की स्थिति गंभीर श्रेणी में पहुंच गई थी। त्योहार के बाद दिल्ली का एक्यूआई 462 हो गया था, जो त्योहार से पहले 314 था। 2022 में हवा की स्थिति थोड़ी सही थी। उस वर्ष दिवाली से पहले दिल्ली का एक्यूआई 259 था, जो दिवाली के बाद 302 रहा था।  2022 में दिवाली के दिन दिल्ली का एक्यूआई 312 था।

2023 यानी पिछले साल भी दिवाली से पहले दिल्ली की हवा मध्यम श्रेणी में थी, जो दिवाली के बाद बिगड़ गई थी। हालांकि, पिछले वर्षों के मुकाबले इसमें थोड़ा सुधार हुआ था। पिछले साल दिवाली से पहले दिल्ली का एक्यूआई 220 था, जो दिवाली के दिन 218 था और उसके बाद 358 पहुंच गया था।

पीआईबी की 31 दिसंबर की प्रेस रिलीज के अनुसार, पिछले साल पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई थी। साथ ही त्योहारों और शादियों में पटाखे जलाने की गतिविधियां भी कम रिकॉर्ड की गई थीं।  

पटाखों में इन केमिकल्स का होता है इस्तेमाल

नवंबर 2023 को तमिलनाडु में पटाखों से हवा की स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक अध्ययन छपा था। इसके अनुसार, पटाखे ऑक्सीडाइजिंग केमिकल्स (जैसे- बेरियम और स्ट्रोंटियम के नाइट्रेट, पोटैशियम  क्लोरेट, पोटैशियम परक्लोरेट्स, पोटैशियम नाइट्रेट्स और आयरन ऑक्साइड) से बनते हैं। पटाखों से घर के तेज आवाज होती है और खतरनाक पदार्थ निकलते हैं। इससे कई तरह की हानिकारक गैसें और अलग-अलग आकार के कण निकलते हैं। आतिशबाजी में विस्फोट से पीएम 2.5 और पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOC), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) व बेंजीन और कई अन्य धातुएं, जैसे- कैडमियम, मैंगनीज और एल्युमीनियम आदि भारी मात्रा में निकलते हैं, जो सेहत के लिए काफी नुकसानदेह हैं।

पटाखों में लगभग 75% पोटैशियम नाइट्रेट, 15% कार्बन और 10% सल्फर और ट्रेस एलिमेंट्स शामिल होते हैं। बड़े पैमाने पर पटाखे जलने के दौरान ट्रेस गैसों (जैसे CO, NOx, SO2 और O3) के साथ-साथ ब्लैक कार्बन (BC) कण भी छोड़ते हैं, जिसके परिणामस्वरूप घने धुएं के बादल बनते हैं, जो कि जलवायु परिस्थितियों के आधार पर कई घंटों तक बने रहते हैं।

लखनऊ में दिवाली पर आतिशबाजी की वजह से त्योहार से पहले के मुकाबले उस दिन NOx की मात्रा 6.59, SO2 की मात्रा 1.95 और PM10 की 2.49 गुणा ज्यादा मिली थी। भारत में दिवाली के पर्व पर सांस संबंधी बीमारियों में 30-40 फीसदी की बढ़ोतरी देखी जाती है। हरिद्वार में व्यावसायिक और रिहायशी इलाकों में औसत शोर में आम दिनों के मुकाबले 18.1 और 29.6 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी।  

रंगों के लिए इन रसायनों का होता है प्रयोग

पटाखे दो बुनियादी केमिकल कंपोनेंट्स से बनते हैं। पहला- जलने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला चारकोल, सल्फर, पोटैशियम नाइट्रेट, क्लोरेट, परक्लोरेट और मैंगनीज। दूसरा- विभिन्न रंगों के धुएं के लिए मेटल साल्ट्स जैसे- स्ट्रोंटियम कार्बोनेट और लीथियम कार्बोनेट लाल रंग के लिए, संतरी के लिए कैल्शियम क्लोराइड, पीले रंग के लिए सोडियम क्लोराइड, हरे के लिए बेरियम कंपाउंड्स, नीले के लिए कॉपर कंपाउंड्स और बैंगनी रंग के लिए स्ट्रोंटियम व कॉपर कंपाउंड्स का मिश्रण इस्तेमाल होता है। आयरन के जलने पर सुनहरा रंग, जबकि मैग्नीशियम ऑक्साइड सफेद रोशनी के लिए इस्तेमाल होता है। सिल्वर रंग एल्युमीनियम, टाइटेनियम या मैग्नीशियम पाउडर के जलने से निकलता है।    

Delhi Air Quality Index, Delhi air quality, Diwali pollution
Delhi News, Delhi Firecracker ban, Diwali 2024, Deepawali 2024

सांप गोली से निकलता है 64500 mcg/m3 PM2.5

सितंबर 2016 में पटाखों के जलने से PM2.5 में होने वाली बढ़ोतरी पर अध्ययन छपा था। इसके मुताबिक, एक बच्चा हर सांस के दौरान करीब 300 मिली हवा अंदर खींचता है और करीब एक मिनट में ऐसा 20 बार करता है। तीन मिनट में बच्चा अपने फेफड़ों में 18-20 लीटर हवा लेता है, जिसमें से प्रदूषित हवा भी होती है। बच्चे फुलझड़ी जलाना पसंद करते हैं। कभी-कभी दो भी जलाते हैं। दो मिनट के दौरान एक फुलझड़ी जलाने पर बच्चे 10000 माइक्रोग्राम/मीटर क्यूब (mcg/m3) PM2.5 की मात्रा के संपर्क में आते हैं।    

इसके लिए छह पटाखों, सांप गोली, 1000 की लड़ी, रस्सी, फुलझड़ी, चकरी और अनार को जलाकर उनसे होने वाले प्रदूषण को देखा गया। इसमें पता चला कि एक सांप गोली जलाने से PM2.5 की सबसे ज्यादा मात्रा निकलती है। इससे 64,500 mcg/m3 की मात्रा निकलती है। इसके बाद दूसरे नंबर पर 1000 की लड़ी है, जिससे 38,540 mcg/m3 PM2.5 निकलता है। रस्सी से 28,950 mcg/m3, फुलझड़ी से 10,390 mcg/m3, चकरी से 9490 mcg/m3 और अनार से 4860 mcg/m3 PM2.5 निकलता है।    

सैकड़ों सिगरेट के बराबर होता है धुआं

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, एक सांप गोली से निकलने वाला धुआं (64,500 mcg/m3) करीब 464 सिगरेटों के धुएं के बराबर है। जबकि 1000 की लड़ी (38,540 mcg/m3) से निकलने वाला प्रदूषण 277 सिगरेट, रस्सी (28,950 mcg/m3) का 208 सिगरेट, फुलझड़ी (28,950 mcg/m3) का 74 सिगरेट, चकरी (9490 mcg/m3) का 68 सिगरेट और अनार (4860 mcg/m3) का प्रदूषण 34 सिगरेटों के बराबर होता है।

एक्सपर्ट की राय

पल्मोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन (प्योर) फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ. संदीप संतोष साल्वी ने कहा, हमने पुणे चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन में पटाखों से निकलने वाले प्रदूषण पर अध्ययन किया था। इसके नतीजे काफी गंभीर थे। एक सांप गोली से करीब 500 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है। अगर ग्रीन पटाखों की बात करें तो इससे प्रदूषण थोड़ा कम होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह खतरनाक नहीं है। समझिए, जैसे एक पटाखे से 500 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है, तो ग्रीन पटाखे से करीब 100 सिगरेट का धुआं कम हो जाएगा। इसमें भी केमिकल्स का प्रयोग होता है, लेकिन रंगों की वेराइटी कम होती है बस। इन ग्रीन पटाखों का कोई मतलब नहीं है, यह भी प्रदूषण में इजाफा ही करते हैं। 

Air Pollution in delhi before and after delhi

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) के पूर्व रिसर्चर एवं स्वतंत्र पर्यावरणविद् अविकल सोमवंशी का कहना है कि पटाखे से होने वाला प्रदूषण हवा की स्थिति को और खराब कर देता है। इसके जलने से घातक गैसे और मेटल्स निकलते हैं, जो हवा में घुलकर उसे और जहरीला बना देते हैं।

इस साल भी लगा है बैन

दैनिक जागरण में 14 अक्टूबर को छपी खबर के अनुसार, दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार ने 14 अक्टूबर से 1 जनवरी 2025 तक पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री व उपयोग पर प्रतिबंध लागू कर दिया है।

पिछले साल हुई कार्रवाई

दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल भी 6 अक्टूबर को पटाखों पर प्रतिबंध का आदेश जारी हुआ था, जिसके तहत 1 जनवरी 2024 तक यह बैन लागू रहा था। इसके तहत पटाखों के उत्पादन और बिक्री पूरी पर तरह प्रतिबंध था। 16 अक्टूबर 2023 से 1 जनवरी 2024 तक दिल्ली में इस आदेश का उल्लंघन कर पटाखे बेचने के 138 मामले सामने आए थे, जबकि 12,459 किलो पटाखे जब्त किए गए थे। इस अवधि में पटाखे फोड़ने के 54 केस मिले थे।  

पूरा सच जानें... किसी सूचना या अफवाह पर संदेह हो तो हमें बताएं

सब को बताएं, सच जानना आपका अधिकार है। अगर आपको ऐसी किसी भी मैसेज या अफवाह पर संदेह है जिसका असर समाज, देश और आप पर हो सकता है तो हमें बताएं। आप हमें नीचे दिए गए किसी भी माध्यम के जरिए जानकारी भेज सकते हैं...

टैग्स

अपनी प्रतिक्रिया दें

No more pages to load

संबंधित लेख

Next pageNext pageNext page

Post saved! You can read it later