Explainer: दिल्ली में फिर से बिगड़ने लगी हवा, जानिए-पराली के अलावा और क्या है इसके लिए जिम्मेदार      

अक्टूबर शुरू होते ही ही दिल्ली-एनसीआर में हवा की स्थिति फिर से बिगड़ने लगी है। 4 अक्टूबर को दिल्ली का AQI 183 था।

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। अक्टूबर शुरू होते ही ही दिल्ली-एनसीआर में हवा की स्थिति फिर से बिगड़ने लगी है। सुप्रीम कोर्ट भी इसको लेकर चिंता जता चुका है। इस बीच अगर देखा जाए तो 4 अक्टूबर को दिल्ली का एअर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 183 था, जो कि अच्छी स्थिति नहीं है। इसको लेकर दिल्ली की ‘आप’ सरकार ने कार्ययोजना के बारे में भी बात कही है।

प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी 3 अक्टूबर को नाराजगी जताते हुए कहा है कि दिल्ली में हर साल बढ़ रहे प्रदूषण से निपटने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है। पिछले सप्ताह कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को हलफनामा दायर कर पराली जलाने से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी थी।

क्या है एक्यूआई

दिल्ली की हवा की स्थिति को एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) से मापा जाता है। भारत में AQI को 6 श्रेणियों में विभाजित किया गया है, अच्छा (0-50), संतोषजनक (51-100), मध्यम (101-200), खराब (201-300), बहुत खराब (301-400) और गंभीर (401-500)। वायु प्रदूषण सांस संबंधी कई रोगों के साथ कुछ गंभीर बीमारियों का कारण है। दिल्ली की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में हो चुकी है।

पिछले हफ्ते की स्थिति

अगर हम दिल्ली के पिछले सात दिनों के एक्यूआई पर नजर डाले तो पता चलता है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है। दिल्ली में हवा की हालत मॉडरेट श्रेणी में आ गई। एक्यूआई का स्तर 101-200 होने पर यह मॉडरेट श्रेणी में आ जाता है। इसमें लंग्स, दमा और हार्ट के मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।

पिछले साल की रिपोर्ट

पिछले साल की स्थिति पर नजर डालें तो 3 नवंबर 2019 को इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी खबर के अनुसार, हल्की बूंदाबांदी के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। सुबह एक्यूआई बढ़कर 1239 हो गया, जो काफी गंभीर था।

6 नवंबर 2023 को बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी रिपोर्ट में लिखा है कि दिल्ली के कई इलाकों में एक्यूआई 400 से अधिक दर्ज किया गया। दिल्ली के आनंद विहार में 999 के साथ ‘खतरनाक’ स्थिति दर्ज की गई।

2018 से 2023 तक अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर में हवा का हाल

अगर हम पिछले कुछ साल के अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर माह के आंकड़ों पर नजर डालें तो हवा की स्थिति को समझ सकते हैं। 1998 से 2023 के इन तीन महीनों के औसत एक्यूआई का डेटा देखने पर पता चलता है कि 2022 की हवा में 2020 के मुकाबले सुधार हुआ था, जबकि 2020 में दुनिया कोरोना महामारी का सामना कर रही थी। इन वर्षों में अक्टूबर में सबसे कम औसत एक्यूआई 2021 में 173 था, जबकि नवंबर में 2019 में औसत एक्यूआई 312 था। इन सालों में 2022 में दिसंबर में सबसे कम औसत एक्यूआई 319 रहा था। अब बात करते  हैं सबसे ज्यादा औसत एक्यूआई की, तो 2018 का अक्टूबर, 2021 का नवंबर और 2018 के दिसंबर का सबसे ज्यादा औसत एक्यूआई वाला रहा।    

कोविड महामारी के दौरान 2020 में पूरे साल में अच्छे से मध्यम श्रेणी वर्ग की हवा 227 दिन रही थी। मतलब जिन दिनों में एक्यूआई (0-200) रहा था। अगर कोविड काल के दौरान के आंकड़ों को छोड़ दें तो 2018 से 2023 के दौरान सबसे ज्यादा अच्छी से मध्यम श्रेणी की हवा 2023 में 206 दिन रही थी। 2023 में 15 दिन हवा गंभीर से अतिगंभीर श्रेणी (401 से अधिक एक्यूआई) में रही थी।        

पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं

इन वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं पर भी नजर डालते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ सालों में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। आंकड़े बताते हैं कि 2020 में पंजाब में पराली जलाने की 83002 घटना सामने आई थी , जबकि 2021 में यह आंकड़ा 71304, 2022 में 49922 और 2023 में यह आंकड़ा 36663 रहा था।

आंकड़ों के हिसाब से हरियाणा में भी पिछले साल ऐसे मामलों में कमी आई है। 2020 में राज्य में 4202, 2021 में 6987, 2022 में 3661 और 2023 में 2303 पराली जलाने के मामले सामने आए थे। इससे पता चलता है कि पंजाब में जहां पिछले कुछ साल में इन मामलों में कमी आई है, वहीं हरियाणा में 2021 में ऐसे मामले बढ़े थे। हालांकि, उसमें गिरावट दर्ज की गई है।

2022 के मुकाबले देखा जाए तो पंजाब में 2023 में पराली जलाने के मामलों में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि 2020 और 2021 के मुकाबले 56 व 49 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह हरियाणा में देखा जाए तो 2022 के मुकाबले 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में 37 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। हालांकि, 2021 के हिसाब से देखा जाए तो यह गिरावट 67 फीसदी और 2020 के मुकाबले 45 फीसदी है।  

वहीं, सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (CSE) की स्टडी में बताया गया है कि 2022 और 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है।

क्या है वजह?

एशिया का प्रमुख गैर लाभकारी पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूसंस काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरन्मेंट एंड वाटर की वेबसाइट पर 2021 में दिल्ली की सर्दी में हवा की स्थिति पर की गई स्टडी अपलोड है। इसके अनुसार, 2019 के बाद से दिल्ली की सर्दी में वायु गुणवत्ता में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है। 2021 की सर्दियों में, लगभग 75 प्रतिशत दिनों में हवा की स्थिति ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में थी। 2021 की सर्दियों के प्रदूषण में परिवहन का करीब 12%, धूल का करीब 7% और घरेलू बायोमास जलाने का करीब 6% योगदान है, जबकि इसका करीब 64 फीसदी हिस्सा दिल्ली के बाहर से आता है।

एक्सपर्ट की राय

इस बारे में हमने सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट में रिसर्चर अविकल सोमवंशी से बात की। उनका कहना है, दिल्ली में वायु प्रदूषण के तीन प्रमुख कारण हैं।

– पहला: जब सर्दी शुरू होती है तो जमीन हवा के मुकाबले जल्दी ठंडी होती है, जिसके कारण प्रदूषण का ऊपरी वायुमंडल में ऊपर की तरफ प्रवाह रुक जाता है। इस वजह से शहर में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है।

– दूसरा: जब हवा नम होती है और तापमान कम होता है, तो नाइट्रोजन ऑक्साइड, अमोनिया, कार्बन मोनोऑक्साइड और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड   (वीओसी) आदि जैसे गैसीय प्रदूषक एक-दूसरे के साथ प्रतिक्रिया करके सेकंडरी PM2.5 बनाते हैं, जो मौजूदा प्रदूषण में बढ़ोतरी करता है।

– तीसरा: पराली जलाने से होने वाला धुआं, अक्टूबर और नवंबर के दौरान, उत्तर में पराली की आग से निकलने वाला धुआं गंगा के मैदानी इलाकों तक पहुंचता है और पहले से बढ़े हुए प्रदूषण के स्तर को और बिगाड़ देता है।

विंटर एक्शन प्लान

प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने विंटर एक्शन प्लान तैयार किया है। इसके मुताबिक, प्रदूषण बढ़ने पर ऑड-ईवन स्कीम को लागू किया जा सकता है। इसमें धूल पर नियंत्रण, वाहनों से होने वाले प्रदूषण, पराली प्रदूषण, पटाखों पर बैन और कृत्रिम वर्षा जैसे उपाय भी शामिल हैं।    

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