दीवाली के बाद दिल्ली की हवा बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है। 31 अक्टूबर के बाद से दिल्ली का औसत एक्यूआई 300 से ऊपर चल रहा है। एक्यूआई के 300 से ऊपर पहुंचने का मतलब स्वास्थ्य के लिए गंभीर चेतावनी है।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। दीवाली के बाद दिल्ली की हवा बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है। 31 अक्टूबर के बाद अगर दिल्ली के औसत एक्यूआई पर नजर डालें, तो पता चलता है यह 300 से ऊपर चल रहा है। 7 नवंबर को भी दिल्ली का औसत एक्यूआई 377 था, जो काफी गंभीर स्थिति है।
एक्यूआई का 300 से ऊपर पहुंचना काफी गंभीर स्थिति है। यह एक तरह से स्वास्थ्य के लिए चेतावनी जारी करना है। इसके संपर्क में लंबे समय तक रहने पर सेहत पर काफी गंभीर असर पड़ सकता है।
7 नवंबर को जहां दिल्ली की बेहद खराब हवा की स्थिति को देखें तो पता चलता है कि इसमें पराली से होने वाले प्रदूषण का प्रतिशत 17 से ज्यादा है।
इसमें अगर वाहनों से होने वाले प्रदूषण को देखें तो 7 नवंबर को हवा के गंभीर स्थिति में पहुंचने के लिए 11.8 फीसदी प्रदूषण वाहनों का रहा।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट की रिपोर्ट के अनुसार, दीवाली के पहले से लगातार बढ़ रहे पीएम 2.5 के स्तर में 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक 46 फीसदी की वृद्धि देखी गई। 31 अक्टूबर की आधी रात तक पीएम2.5 अपने चरम पर पहुंच गया, जो 603 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (µg/m³) था।
बढ़ते प्रदूषण के कारण आजकल लोगों में अक्सर खांसने, सांस लेने, आंखों में जलन जैसी कई समस्याएं देखने को मिल रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से भी इससे सावधान रहने को कहते हुए एक्स हैंडल पर पोस्ट की गई है। इसके अनुसार, इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले लोगों में छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और सांस या हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति हैं।
भारत में 2019 में करीब 17 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हुई थी, जो कुल मौतों का 18 फीसदी है। इनमें से फेफड़ों की बीमारी की वजह से 32.5 फीसदी, हृदय की बीमारी से 29.2 फीसदी, स्ट्रोक से 16.2 फीसदी और लोअर रेस्पिरेट्री इंफेक्संस की वजह से 11.2 फीसदी की जान गई थी।
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) का लोगों तक हवा की स्थिति की जानकारी देने का उपकरण है। इससे पता चलता है कि शहर की हवा की स्थिति क्या है। एक्यूआई की छह श्रेणियां होती हैं- अच्छी, संतोषजनक, मध्यम, खराब, बहुत खराब और गंभीर। एक्यूआई में जिन आठ पोल्यूटेंट्स को देखा जाता है, वे हैं पीएम 10 (PM10), पीएम 2.5 (PM2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), ओजोन (O3), अमोनिया (NH3) और लेड (Pb)। एक्यूआई की विभिन्न श्रेणियां स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को भी बताती हैं।
वाहनों के प्रदूषण से नुकसान: वाहनों में ईंधन के जलने से मुख्य रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), फोटोकेमिकल ऑक्सीडेंट, एयर टॉक्सिक्स यानी बेंजीन (C6H6), एल्डिहाइड, लेड (Pb), पार्टिकुलेट मैटर (PM), हाइड्रोकार्बन (HC), सल्फर के ऑक्साइड (SO2) और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAHs) प्रदूषक निकलते हैं। जबकि पेट्रोल/गैसोलीन से चलने वाले वाहनों में हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख प्रदूषक हैं। वहीं, डीजल से चलने वाली गाड़ियों से नाइट्रोजन के ऑक्साइड और कण हवा को जहरीला बनाते हैं। इससे सेहत पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर पड़ता है। इससे नजर कमजोर होने से लेकर कैंसर और मौत तक का खतरा हो सकता है, खासतौर से कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने से। इनका सीधा असर श्वसन और हृदय प्रणाली पर पड़ता है।
पराली से पड़ने वाला असर: दैनिक जागरण की वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, धान की पराली से करीब 70 फीसदी कार्बन डाइक्साइड, 7 फीसदी कार्बन मोनोआक्साइड, 0.66 फीसदी मीथेन व 2.09 फीसदी नाइट्रिक आक्साइड जैसी गैसें और आर्गेनिक कंपाउंड होते हैं। पराली के धुएं से गर्भवती महिलाओं के भ्रूण पर असर पड़ता है। इससे भ्रूण की वृद्धि रुक सकती है। अस्थमा से पीड़ित महिलाओं के लिए यह धुआं जानलेवा हो सकता है। सीओ और सीओटू गैसों के संपर्क में ज्यादा समय तक रहने से ब्रेन डैमेज का खतरा भी रहता है। एक हफ्ते तक अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति पराली का धुआं सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है, तो उसे फेफड़ों में इन्फेक्शन और फेफड़ों का दमा भी हो सकता है। इससे फेफड़ों के कैंसर और हार्ट अटैक का भी खतरा रहता है।
पटाखे से होने वाला असर: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट पर अपलोड रिपोर्ट के अनुसार, पटाखों के जलने से विशेष रूप से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), और पार्टिकुलेट मैटर (PM) के साथ एल्युमीनियम, मैग्नीज और कैडमियम जैसी कुछ धातुएं निकलती हैं। दीवाली के त्योहार के आसपास सांस की बीमारी, बुखार, ब्रोन्कियल अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। दशहरा और दीवाली के दौरान खांसी सांस फूलने की शिकायत आई थी। कुछ जगहों पर लोगों को दीवाली के बाद आंखों से अत्यधिक पानी आना, लाल होना और जलन महसूस होने का मामला सामने आया था। इसके अलावा त्वचा पर धब्बे या खुजली की समस्या भी सामने आई थीं।
नोएडा के कैलाश अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन डॉ. ललित मिश्रा का कहना है कि पटाखों से निकलने वाले धुएं और मेटल्स से सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है। मेटल्स से फेफड़ों में इंफेक्शन से सांस लेने में दिक्कत आती है। माइक्रोपार्ट के शरीर में पहुंचने से सांस लेने में दिक्कत शुरू हो जाती है। पटाखे से निकलने वाला धुआं भी सेहत को नुकसान पहुंचाता है। इससे इंटरस्टीशियल लंग डिसीज (आईएलडी) हो सकती है। यह फेफड़ों में सूजन और निशान पैदा करने वाली एक बीमारी है। सांस लेने में तकलीफ और सूखी खांसी इसके लक्षण हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) की वेबसाइट पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का मुख्य मार्ग सांस के माध्यम से होता है। इन प्रदूषकों में सांस लेने से हमारे पूरे शरीर में कोशिकाओं में सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर और सेल्स में परिवर्तन होता है, जो फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क सहित अन्य अंगों को प्रभावित करता है और बीमारी का कारण बनता है। इससे शरीर का लगभग हर अंग प्रभावित हो सकता है। अपने छोटे आकार के कारण कुछ वायु प्रदूषक फेफड़ों के माध्यम से रक्त में प्रवेश करने में सक्षम होते हैं और पूरे शरीर में फैल जाते हैं, जो सूजन और कैंसर का कारण बन सकते हैं।
दिल्ली के स्वामी दयानंद अस्पताल के सीएमओ डॉ. ग्लैडबिन त्यागी का कहना है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से दो तरह की बीमारियां होती हैं। शॉर्ट टाइम और लॉन्ग टाइम। वायु प्रदूषण के ज्यादा संपर्क में रहने से मौत तक हो सकती है। हर आदमी के शरीर के सिस्टम की क्षमता अलग-अलग होती है। कुछ को एक्यूआई 350 होने पर ही दिक्कत शुरू हो जाती है, जबकि कुछ 400 एक्यूआई होने पर रिएक्ट करते हैं। मास्क लगाने से सांस में जाने वाले कण कुछ कम हो जाते हैं। एयर प्यूरिफायर भी इसे थोड़ा कम कर सकता है, लेकिन वायु प्रदूषण को कम करने का कोई ठोस उपाय ही देखना होगा।
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर के अनुसार,
– सुबह और देर शाम को घर से बाहर टहलना, दौड़ना और शारीरिक व्यायाम करने से बचें। यदि आवश्यक हो तो सुबह और देर शाम के समय बाहरी दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें और एयर वेंटिलेशन के लिए दोपहर 12 बजे के बीच शाम 4 बजे तक दोपहर में इन्हें खुला रखें। (खराब से गंभीर AQI वाले दिन)
– लकड़ी, कोयला, पशुओं का गोबर, मिट्टी का तेल जैसे बायोमास जलाने से बचें। खाना पकाने और हीटिंग उद्देश्यों के लिए स्वच्छ धुआं रहित ईंधन का प्रयोग करें (गैस या बिजली)।
– सर्दियों में ‘अंगीठी ‘ में लकड़ी या कोयला जलाने से बचें।
– रूम फ्रेशनर के इस्तेमाल से बचें। इसके दुष्प्रभाव होते हैं, क्योंकि यह तेजी से ऑक्सीजन को खत्म करता है।
– किसी भी प्रकार की लकड़ी, पत्तियां, फसल अवशेष और अपशिष्ट को खुले में जलाने से बचें।
– सिगरेट, बीड़ी और संबंधित तम्बाकू उत्पादों का सेवन न करें।
– बंद परिसर में मच्छर भगाने वाली क्वाइल और अगरबत्ती न जलाएं।
– AQI के अनुसार, बाहरी गतिविधियों को पुनर्निर्धारित करें और खराब से गंभीर AQI वाले दिनों में घर के अंदर ही रहने की कोशिश करें।
– घरों के अंदर झाड़ू या वैक्यूम सफाई के बजाय गीला पोछा लगाएं।
– अपनी आंखों को नियमित रूप से बहते पानी से धोते रहें और गर्म पानी से नियमित गरारे करें।
– सांस फूलना, चक्कर आना, खांसी, सीने में तकलीफ या दर्द, आंखों में जलन (लाल या पानी आना) होने पर नजदीकी डॉक्टर से सलाह लें।
– एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर फलों और सब्जियों के साथ स्वस्थ आहार और पर्याप्त मात्रा में पीने पिएं।
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