इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ने के साथ ही नाबालिगों के साथ साइबर क्राइम के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। आइए इन अपराधों और उनसे बचने के तरीकों पर एक नजर डालते हैं।
नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। इंटरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ने के साथ ही नाबालिगों के साथ साइबर क्राइम के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में नाबालिगों के खिलाफ साइबर अपराध के 1823 मामले सामने आए थे, जबकि 2021 में यह संख्या 1376 थी।
नाबालिगों के खिलाफ होने वाले अपराध में साइबर ब्लैकमेलिंग/धमकी/उत्पीड़न के अलावा फेक प्रोफाइल, साइबर पोर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग/बुलिंग, ऑनलाइन गेम्स के जरिए इंटरनेट क्राइम समेत कुछ अन्य अपराध शामिल हैं। आइए इन अपराधों और उनसे बचने के तरीकों पर एक नजर डालते हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, साइबर बुलिंग डिजिटल टेक्नोलॉजी के उपयोग से किया गया अपराध है। यह सोशल मीडिया, मैसेजिंग प्लेटफॉर्म, गेमिंग प्लेटफॉर्म और मोबाइल फोन से हो सकता है। यह बार-बार किया जाने वाला व्यवहार है, जिसका उद्देश्य बच्चे को डराना, क्रोधित करना या शर्मिंदा करना होता है।
बच्चे और किशोर इस साइबर थ्रेट का सामना कर रहे हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी बुकलेट में लिखा है, इसमें अपराधी यौन उत्पीड़न अथवा शोषण करने के लिए बच्चों का भरोसा हासिल करने के लिए सोशल मीडिया अथवा मैसेजिंग प्लेटफॉर्म के जरिए भावनात्मक संबंध स्थापित करता है। साइबर ग्रूमर फर्जी अकाउंट बनाकर बच्चों जैसा व्यवहार करते हैं। बच्चों को फंसाने के लिए ये गेमिंग वेबसाइट, सोशल मीडिया, ईमेल, चैट रूम, इंस्टेंट मैसेजिंग का इस्तेमाल कर सकता है।
राजस्थान स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की वेबसाइट के अनुसार, हाल के वर्षों में इंटरनेट की आसान पहुंच और इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध वीडियो के कारण चाइल्ड पोर्नोग्राफी में वृद्धि हुई है। यह सबसे जघन्य अपराध है। इसके कारण कई अन्य अपराध जैसे सेक्स टूरिज्म, बच्चों का यौन शोषण आदि भी होते हैं।
किसी भी माध्यम से किसी बच्चे का वास्तविक या आभासी यौन गतिविधियों में संलग्न होना या बच्चे के यौन अंगों का चित्रण, जिसका प्रमुख लक्षण यौन उद्देश्य के लिए हो, इसके अंतर्गत आता है।
स्टॉकिंग का मतलब है पीछा करना। सोशल नेटवर्क या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से किसी का पीछा करना साइबर स्टॉकिंग कहलाता है। अपराधी सोशल नेटवर्क पर अपलोड की गई जानकारी का दुरुपयोग करके दूसरे को परेशान भी कर सकते हैं। स्पाईवेयर का एक रूप स्टॉकरवेयर पीड़ित के कंप्यूटर, स्मार्टफोन या अन्य इंटरनेट वाले डिजिटल डिवाइस पर चल सकता है। इससे इन डिवाइसों पर होने वाली यूजर की सभी गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जा सकता है। कुछ व्यावसायिक सॉफ्टवेयर उन अपराधियों को सक्षम बनाता है, जो इस मैलवेयर का उपयोग करके स्मार्टफोन कैमरे और माइक्रोफोन को दूर से चालू और ट्रैक कर सकते हैं।
ट्रॉलिंग का उपयोग आमतौर पर समुदायों, टारगेट सेलिब्रिटी के समर्थकों या वीआईपी लोगों को परेशान करने के लिए किया जाता है। हालांकि, ट्रॉलिंग को साइबर बुलिंग का एक रूप माना जाता है। इसका पीड़ित के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इसमें भड़काऊ संदेश, इमेज या वीडियो पोस्ट कर यूजर को परेशान किया जाता है।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर तस्वीरें पोस्ट करने वाले यूजर्स का इस तरह के अपराधी फायदा उठा सकते हैं। किसी नाबालिग के चेहरे को दूसरे के शरीर से जोड़कर उसे डराने या ब्लैकमेल करने का काम कर सकते हैं।
ऑनलाइन गेमिंग के यूजर्स काफी बढ़ गए हैं। इसके साथ में खतरे भी बढ़े हैं। बहुत से वयस्क और साइबर अपराधी बच्चे या किशोर होने का बहाना बनाकर ऑनलाइन गेम खेलते हैं। वे गेम के बारे में टिप्स देकर दोस्ती करने का प्रयास करते हैं। इसके बाद निजी जानकारी हासिल कर बच्चों या किशोरों को किसी अपराध के लिए उकसा सकते हैं। गेम्स डाउनलोड करने के लिए मिले लिंक्स के जरिए व्यक्तिगत जानकारी मांगी जाती है। साइबर अपराधी इसका उपयोग अपने फायदे के लिए कर सकता है।
साइबर सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय द्वारा जारी बुकलेट के मुताबिक,
– सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अनजान व्यक्तियों की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार न करें।
– सोशल मीडिया या अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपनी निजी सूचना जैसे जन्मतिथि, पता और फोन नम्बर शेयर न करें।
– आपकी ऑनलाइन पोस्ट तक कौन पहुंच सकता है, इसके लिए आप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्राइवेसी सेटिंग में जाएं। अपनी प्रोफाइल तक केवल आपके दोस्तों की पहुंच को ही सीमित करने का प्रयास करें।
– सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कमेंट्स या पोस्ट में अपना फोन नम्बर और अन्य निजी ब्योरे शेयर न करें।
– कभी भी अनजान सोर्स से अनावश्यक सॉफ्टवेयर और ऐप्स जैसे डेटिंग ऐप, ऑनलाइन गेम आदि को इंस्टॉल न करें। चैट रूम में चैटिंग करते समय आपको विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। चैट रूम में अपने निजी जानकारी कभी साझा न करें और अपनी पहचान को सीमित रखें।
– यदि किसी दोस्त या अनजान व्यक्ति की पोस्ट पढ़कर दुखी महसूस करे तो उस पर आक्रामक उत्तर न दें। इससे आरोपी इस प्रकार के मैसेज फिर से पोस्ट करेगा। यदि बार-बार इस प्रकार के मैसेज या पोस्ट आती हैं, तो तत्काल अपने माता-पिता या बड़ों को इसकी जानकारी दें।
– ग्रूमर या बुली को ब्लॉक कर दीजिए।
– ऐसी पोस्ट या मैसेज को सेव कर लें। कानूनी कार्रवाई के लिए इनकी जरूरत पड़ सकती है।
– पुलिस से भी शिकायत की जा सकती है।
– आपके रंग-रूप की प्रशंसा करने वाले कम अवधि वाले लोगों से सतर्क रहें।
– शारीरिक और यौन अनुभव के बारे में बात करने वाले लोगों से बात न करें। दूसरे को ऐसी बातें नहीं करने को कहे। उसके न मानने पर अपने माता-पिता को सूचित करें।
– अश्लील तस्वीरें अथवा वीडियो शेयर करने की बात करने वाले यूजर से संपर्क न रखें।
– अगर चैट पार्टनर वेबकैम पर कनेक्ट न हो तो वेबकैम को ऑन न करें।
– जिससे ऑनलाइन मिले हों, उससे अकेले मिलने न जाएं।
– किसी के साथ क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड की जानकारी शेयर न करें।
– किसी भी फिशिंग लिंक पर क्लिक मत करें।
राजस्थान स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, बच्चों (18 साल से कम) को यौन रूप से स्पष्ट रूप से दिखाने वाली सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण पर आईटी एक्ट की धारा 67बी के तहत दंड का प्रावधान है। इसके तहत पहली बार के अपराध पर पांच साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार या इसके बाद इस तरह का अपराध करने पर सात साल तक की सजा और दस लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के मकसद से प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज (POCSO) एक्ट बनाया गया है। इसके सेक्शन 14 (1) के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में पांच साल तक की सजा और जुर्माना और इसके बाद अपराध करने की स्थिति में सात साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।
इस एक्ट की धारा 15 के तहत, बच्चों से संबंधित किसी भी अश्लील सामग्री को किसी भी माध्यम में रखने पर तीन वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
दिल्ली पुलिस साइबर क्राइम सेल ने आईटी एक्ट 2000 की धारा 67 के तहत एक केस दर्ज किया था। इसमें नई दिल्ली एक प्रसिद्ध स्कूल के एक छात्र को उसके चेहरे के कारण चिढ़ाते थे। इसको लेकर उसने एक वेबसाइट बनाई और स्कूल की टीचर और छात्राओं के बारे में अश्लील भाषा का उपयोग करते हुए उनकी जानकारी दे दी। पुलिस ने उसको गिरफ्तार कर उसे बाल सुधार गृह में रखा। करीब एक हफ्ते बाद आरोपी किशोर को जुवेनाइल बोर्ड ने जमानत दी।
इस बारे में हमने साइबर कानून एक्सपर्ट एवं लेखक एडवोकेट (डॉ.) प्रशांत माली से संपर्क किया। उनका कहना है, चाइल्ड पोर्नोग्राफी दो कानूनों के तहत कवर होता है। एक है पॉक्सो और दूसरा है आईटी एक्ट 2000 यानी सूचना व प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000। ये दोनों ही गैर जमानती अपराध हैं और इनमें सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। आईटी एक्ट और पॉक्सो के तहत अपराधी को सजा दी जाती है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी अगर आप इंटरनेट पर सर्च भी करते हैं, आपने देखा नहीं है, फिर यह कॉलम आप पर लागू हो जाता है इसलिए सावधान रहिए क्योंकि यह गैर जमानती अपराध है।
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