आरबीआई की तरफ से देश के शीर्ष विलफुल डिफॉल्टर्स के 68,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी के दावे के साथ वायरल हो पोस्ट गलत है। आरबीआई ने नहीं, बल्कि बैंकों ने विलफुल डिफॉल्टर्स के कर्ज को बट्टा खाते में डाला है, जिसका मतलब कर्ज को माफ किया जाना नहीं है।
नई दिल्ली (विश्वास टीम)। देश के 50 बड़े विलफुल डिफॉल्टर्स की सूची सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने मेहुल चोकसी सहित कई भगोड़ों के 68,607 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ कर दिया है।
विश्वास न्यूज की पड़ताल में यह दावा गलत निकला। बकाया कर्ज और उसे बट्टा खाते में डाले जाने का फैसला बैंकों से संबंधित है न कि आरबीआई से। इतना ही नहीं जिन विलफुल डिफॉल्टर्स के कर्ज को बट्टा खाता में डाला गया है, वह कर्ज माफी नहीं है।
फेसबुक यूजर ‘We Support Ravish Kumar’ ने वायरल पोस्ट को शेयर (आर्काइव लिंक) किया हुआ है। इसमें लिखा है, ”RTI में हुआ सनसनीखेज खुलासा। RBI ने मेहुल चोकसी सहित कई भगोड़ों के 68,607 करोड़ रुपये का कर्ज किया माफ। किसके दबाव में डिफॉल्टर्स पर इतना रहम दिखा रही है आरबीआई?”
कुछ दिनों पहले सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने 24 अप्रैल 2020 को देश के 50 विलफुल डिफॉल्टर्स की सूची मुहैया कराई थी, जिनके ऊपर 68,607 करोड़ रुपये का कर्ज है। आरबीआई की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, बैंकों ने इस कर्ज को बट्टा खाते में डाल दिया है।
कई न्यूज रिपोर्ट्स में इस आरटीआई से मिली जानकारी का इस्तेमाल किया गया है। वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि RBI ने मेहुल चोकसी समेत कई भगोड़ों के 68,607 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ कर दिया। आरबीआई के प्रवक्ता ने विश्वास न्यूज को बताया, ‘यह कहना गलत है कि आरबीआई ने कर्ज को माफ किया। आरबीआई न तो कि किसी गैर सरकारी और गैर बैंकिंग संस्थानों को कर्ज देता है और न ही उसे बट्टा खाते में डालता है। यह काम बैंकों का होता है।’
आरटीआई की तरफ से दी गई जानकारी में इस बात का साफ-साफ उल्लेख भी किया गया है कि दी जा रही जानकारी बैंकों की तरफ से दी गई जानकारी है और इसमें किसी भी गड़बड़ी के लिए आरबीआई जिम्मेदार नहीं होगा।
न्यूज सर्च में 29 अप्रैल को ‘हिंदुस्तान’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट का लिंक मिला, जिसमें आरबीआई के प्रवक्ता के हवाले से इस मामले में स्पष्टीकरण दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘आरबीआई न तो किसी को कर्ज देती है और न उसे राइट ऑफ यानी बट्टे खाते में डालने का काम करता है। आरबीआई के प्रवक्ता ने मंगलवार को बताया कि ये काम बैंकों की तरफ से एनपीए (फंसे कर्ज) के लिए प्रावधान के बाद किया जाता है। उन्होंने इस बारे में चल रही खबरों को निराधार बताते हुए कहा कि रिजर्व बैंक किसी भी गैर सरकारी और गैर बैंकिंग संस्थानों को न तो कर्ज देता है और न ही उसे राइट ऑफ करता है।’
प्रवक्ता ने कहा, ‘बैंकों की तरफ से लंबित कर्ज को राइट ऑफ या बट्टा खाते में डाले जाने का मतलब उसकी माफी नहीं है। कर्ज वसूली के बाद यह रकम बैंकों के मुनाफे में शामिल कर ली जाती है।’
29 अप्रैल को ‘हिंदुस्तान’ में छपी खबर में पूर्व बैंकिंग सचिव राजीव टकरू के मुताबिक, ‘रिजर्व बैंक की आरटीआई को गलत तरीके के समझकर पेश किया जा रहा है। देश में कर्ज के तमाम मामले ऐसे होते हैं जिनकी वसूली मुकदमों और अलग-अलग विभागों की जांच में उलझ जाती है। उनके मुताबिक, इन चीजों में लंबा वक्त लगता है। ऐसे में उस कर्ज को बैंक के खातों में लेकर चलने से वो कारोबार के मुनाफे पर बोझ बन जाता है इसलिए ऐसे कर्ज को अलग खातों में रख दिया जाता है, इसका अर्थ कर्ज माफ कर देना नहीं। जब कर्ज की वसूली हो जाती है तो फिर से बैंक के मुनाफे में उस रकम को शामिल कर लिया जाता है।’
वायरल पोस्ट शेयर करने वाले पेज को फेसबुक पर करीब 55 हजार से अधिक लोग फॉलो करते हैं।
निष्कर्ष: आरबीआई की तरफ से देश के शीर्ष विलफुल डिफॉल्टर्स के 68,000 करोड़ रुपये की कर्ज माफी के दावे के साथ वायरल हो पोस्ट गलत है। आरबीआई ने नहीं, बल्कि बैंकों ने विलफुल डिफॉल्टर्स के कर्ज को बट्टा खाते में डाला है, जिसका मतलब कर्ज को माफ किया जाना नहीं है।
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