नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। वित्तीय समावेशन के राष्ट्रीय लक्ष्य के साथ शुरू की योजना प्रधानमंत्री जन धन योजना की शुरुआत 28 अगस्त 2014 को हुई थी और 28 अगस्त 2024 को इस योजना के 10 साल पूरे हो गए। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से इसके लाभार्थियों को शुभकामना देते हुए बतााय कि अब तक इस योजना के तहत कुल 53 करोड़ से अधिक बैंक खातों खुले, जिसमें करीब 2.31 लाख करोड़ रुपये की रकम जमा हुई।
बिलकुल सटीक आंकड़ों में देखें, तो इस योजना के तहत खुले कुल खातों की संख्या 53.13 करोड़ है, जिसमें कुल 231,235.97 करोड़ रुपये की धनराशि जमा हुए। तुलनात्मक तौर पर देखें तो यह रकम शेयर बाजार में सूचीबद्ध पीएसयू इंडियन रेलवे फाइनेंस कॉर्प लिमिटेड (आईआरएफसी) के कुल बाजार पूंजीकरण के लगभग बराबर है। 28 अगस्त 2024 की ट्रेडिंग कीमत के आधार पर आईआरएफसी का बाजार पूंजीकरण लगभग 2.37 लाख करोड़ रुपये रहा। यह रकम इस बार के बजट में रेलवे को मिले कुल ऐतिहासिक आवंटन 2.55 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ही कम है।
न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट किए जाने से ठीक एक दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना से संबंधित एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि वित्त वर्ष 25 में सरकार का लक्ष्य तीन करोड़ से अधिक जन धन खाते को खोलना है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना वित्तीय समावेशन का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में चलाई जा रही महत्वपूर्ण योजना है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, इस योजना का उद्देश्य बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों को बैंकिंग के दायरे में लाते हुए वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल करना है। इस योजना का लक्ष्य देश के प्रत्येक परिवार के लिए कम से कम एक मूल बैंकिंग खाते की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। साथ ही इस योजना के लाभार्थियों को रुपे डेबिट कार्ड दिया जाता है, जिसमें एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर शामिल होता है।
गौरतलब है कि ये खाते न केवल डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के मामले में काफी अहम रहे हैं, बल्कि लाभार्थियों को सब्सिडी या भुगतान के मामले में भी इनकी भूमिका काफी अहम रही है। एक फरवरी 2025 को पेश किए गए अंतरिम बजट में दी गई जानकारी के मुताबिक, पीएम जन-धन खातों का इस्तेमाल करते हुए कुल 34 लाख करोड़ रुपये की डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर किया है, जिससे सरकार को कुल 2.7 लाख करोड़ रुपये की बचत हुई।
साथ ही JAM यानी जन धन, आधार और मोबाइल ने सरकार को लाभार्थियों को सीधे और प्रभावी तरीके से लाभ पहुंचाने में सक्षम बनाया है। सरकारी विभाग और मंत्रालय डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का इस्तेमाल प्राथमिकता के साथ कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में कुल जन धन खातों की संख्या 95,550,249 है, जिसमें जमा रकम 48,757.32 करोड़ रुपये है। इसके बाद दूसरे और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल और बिहार है, जहां क्रमश: 51,820,577 और 60,619,546 खातों में 22,388.22 करोड़ रुपये जमा है। वहीं चौथे और पांचवें नंबर पर राजस्थान और मध्य प्रदेश मौजूद है, जहां जन धन खातों में क्रमश: 18,237.15 करोड़ रुपये और 14,619.42 करोड़ रुपये जमा है।
इसके बाद सूची में महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, कर्नाटक और झारखंड का नंबर आता है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत कुल खाताधारकों की संख्या करीब 53 करोड़ से अधिक है, जिसमें महिला खाताधारकों की हिस्सेदारी 55.6 फीसदी है और 66.6% खाते ग्रामीण और अर्द्धशहरी इलाकों में हैं। इस आधार पर देखें तो यह फाइनेंशियल इनक्लूजन के जरिए लैंगिक विषमता को भी दूर करने में मदद कर रहा है।
वहीं, अगर जमा रकम के मामले में देखें तो 14 अगस्त 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, प्रत्येक खाते में औसत जमा रकम 4,352 रुपये है, जबकि मार्च 2015 में प्रत्येक खातों में औसत जमा रकम मात्र 1,065 रुपये थी। इस योजना के लाभार्थियों को रुपे कार्ड भी जारी किया जाता है और 14 अगस्त 24 तक कुल 36.14 करोड़ रुपे कार्ड जारी किया जा चुका है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 की रिपोर्ट में भारत में फाइनेंशियल इन्क्लूजन के प्रोग्रेस का जिक्र किया गया है और जिन पांच आधारों पर इस प्रोग्रेस का आकलन किया गया है, उसमें एक महत्वपूर्ण आधार के तौर पर करीब 53 करोड़ जन धन खातों का जिक्र है। इसके अलावा 1.3 लाख बैंक ब्रांच, प्रति लाख वयस्कों की आबादी पर 14.3 कमर्शियल बैंकों की उपलब्धता, 2022 में प्रति लाख वयस्कों की आबादी पर 24.6 एटीएम और करीब आठ करोड़ लोगों के पास क्रेडिट कार्ड की उपलब्धता का जिक्र है, जो कुल आबादी का करीब 5.5 फीसदी हिस्सा है।
चूंकि इस योजना को दुनिया की सबसे बड़ी फाइनेंशियल इन्क्लूजन स्कीम का दर्जा हासिल है, इसलिए यह समझना जरूरी है कि आखिर फाइनेंशियल इन्क्लूजन क्या है और भारत में इसके मायने और मतलब क्या है?
विश्व बैंक की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, वित्तीय समावेशन का मतलब व्यक्तियों और व्यवसायों की सार्थक व किफायती वित्तीय उत्पादों व सेवाओं तक पहुंच का होना है, जिससे लेनदेन, भुगतान, बचत, क्रेडिट और बीमा जैसी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है।
किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में वित्तीय समावेशन की भूमिका काफी अहम होती है। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के भीतर गरीबी और असमानता को कम करने, आर्थिक वृद्धि को गति देने, छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहित करने और वंचित समुदाय को सशक्त बनाता है।
आर्थिक वृद्धि में वित्तीय समावेशन की भूमिका को देखते हुए उसकी प्रगति की निगरानी के लिए देश के केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 17 अगस्त 2021 को फाइनेंशियल इन्क्लूजन इंडेक्स को लॉन्च किया था। यह एक समग्र इंडेक्स है, जिसमें बैंकिंग, निवेश, बीमा और पेंशन समेत अन्य क्षेत्र शामिल हैं। यह एफआई-इंडेक्स देश भर में वित्तीय समावेशन की स्थिति के बारे में बताता है।
आरबीआई के मुताबिक, मार्च 2023 के 60.1 के मुकाबले मार्च 24 में एफआई-इंडेक्स 64.2 दर्ज किया गया, जो देश में फाइनेंशियल इन्क्लूजन की बेहतर स्थिति का संकेत देता है। साथ ही यह फाइनेंशियल इन्क्लूजन, डिजिटल इन्क्लूजन को बढ़ावा देता है। इसलिए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में इसे अगले लक्ष्य के तौर पर चिह्नित किया गया है।
आर्थिक सर्वे के “वित्तीय समावेशन पहुंच के भीतर है, डिजिटल वित्तीय समावेशन अगला लक्ष्य है” में विश्व बैंक के वैश्विक वित्तीय समावेशन डेटाबेस का जिक्र करते हुए कहा गया है कि भारत ने पिछले दस वर्षों में अपने वित्तीय समावेशन लक्ष्यों को हासिल करने में बेहतरीन प्रगति की है। औपचारिक वित्तीय संस्थानों में खाता रखने वाले वयस्कों की संख्या 2011 में 35 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 77 फीसदी हो गई।
सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को फिनटेक राष्ट्र के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से सरकार ने डिजिटल इंडिया मिशन, मेक इन इंडिया समेत कई पहलों की शुरुआत की है और इस वजह से भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते फिनटेक बाजारों में से एक है, जिसे तीसरी सबसे बड़ी बढ़ती फिनटेक अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है।
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