नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे चार जून को आएंगे और इस बीच वित्त मंत्रालय जुलाई महीने में पेश किए जाने वाले फुल बजट की तैयारियों में जुटा हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई सरकार के गठन के बाद 15 जुलाई से पहले वित्त वर्ष 2025 के बजट को पेश जाने की संभावना है। चुनाव की वजह से सरकार ने वित्त वर्ष 25 के लिए अंतरिम बजट को पेश किया था।
वित्त वर्ष 2025 के लिए पेश किए जाने वाले फुल बजट से पहले रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर (एसएंडपी/S&P) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के आउटलुक को संशोधित करते हुए उसे ‘स्टेबल’ से अपग्रेड कर ‘पॉजिटिव’ कर दिया। करीब एक दशक बाद हुए आउटलुक में बदलाव के साथ ही रेटिंग एजेंसी ने भारत की समग्र रेटिंग को ‘BBB-‘ पर बरकरार रखा है, लेकिन आउटलुक में हुए बदलाव के साथ ही भारत की सॉवरेन रेटिंग में अपग्रेड की उम्मीद बढ़ गई है, जो फिलहाल ‘BBB-‘ यानी सर्वाधिक निम्न इन्वेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग है।
एसएंडपी के अपग्रेड पर प्रतिक्रिया देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “यह भारत के मजबूत विकास प्रदर्शन और आने वाले वर्षों के लिए आशाजनक इकॉनमिक आउटलुक को दर्शाता है। यह 2014 से किए गए व्यापक आर्थिक सुधारों की श्रृंखला के साथ-साथ पूंजीगत व्यय, राजकोषीय अनुशासन और निर्णायक और दूरदर्शी नेतृत्व के कारण संभव हुआ है।”
आउटलुक अपग्रेड के दो दिन बाद ही जीडीपी का आंकड़ा आया और सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में 7.8 फीसदी की वृद्धि दर के साथ ही वित्त वर्ष 24 के लिए जीडीपी की वृद्धि दर 8.2 रहने की उम्मीद है, जो उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन है।
सॉवरेन रेटिंग तय करने के लिए एजेंसियां कई स्तरों पर मूल्यांकन करती हैं, जिसमें राजनीतिक, आर्थिक समेत कई अलग-अलग फैक्टर शामिल होते है। मूल्यांकन के दौरान सरकारी खर्च की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है और साथ ही राजकोषीय स्थिति को बेहतर करने की दिशा में राजनीतिक प्रतिबद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस आर्टिकल में हम उन सभी फैक्टर्स को समझने की कोशिश करेंगे, जिसके आधार पर एजेंसियां आम तौर पर किसी देश की सॉवरेन रेटिंग को तय करती हैं।
‘पॉजिटिव’ आउटलुक का नजरिया भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि, गुणवत्ता पूर्ण सरकार खर्च में इजाफा और राजकोषीय घाटे को कम करने की राजनीति प्रतिबद्धता पर आधारित है।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोविड-19 महामारी से उल्लेखनीय वापसी की है। हमारा अनुमान है कि पिछले तीन वर्षों में वास्तविक जीडीपी वृद्धि औसतन 8.1% सालाना रही है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सर्वाधिक है। हमें उम्मीद है कि ये वृद्धि की गति मध्यम अवधि में जारी रहेगी, अगले तीन वर्षों में जीडीपी वृद्धि दर सालाना 7.0% रहेगी।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले चार से पांच वर्षों के दौरान सरकार की गुणवत्तापूर्ण खर्च में इजाफा हुआ है और मोदी सरकार इन्फ्रा खर्च पर बजटीय आवंटन को लगातार बढ़ाने में सफल रही है। पूंजीगत खर्च के बढ़कर 11 ट्रिलियन रुपये होने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 25 में जीडीपी का 3.4% होगा और यह पिछले एक दशक के मुकाबले लगभग 4.5 गुना अधिक है। इससे बुनियादी ढांचा में सुधार होने के साथ कनेक्टिविटी बेहतर होगी, जो उन चुनौतियों को दूर करेगा, जिसकी वजह से लॉन्ग-टर्म ग्रोथ बाधित होता रहा है।
एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यदि भारत के राजकोषीय घाटे में सार्थक रूप से कमी आती है, जिससे सामान्य सरकारी कर्ज की मात्रा जीडीपी के मुकाबले 7% से नीचे आती है, तो रेटिंग में बदलाव हो सकता है।
साथ ही केंद्रीय बैंक अगर अपनी मॉनेटरी पॉलिसी के जरिए महंगाई को काबू करने में सफल होता है, तो उस स्थिति में भी रेटिंग को अपग्रेड किया जा सकता है।
रिपोर्ट में जहां अपग्रेड की संभावना जताई गई है, वहीं डाउनग्रेड की संभावना से भी इनकार नहीं किया गया है। अगर टिकाऊ पब्लिक फाइनैंस को बनाए रखने के लिए राजनीतिक प्रतिबद्धता में कमी आती है, जो देश की संस्थागत क्षमता के कमजोर होने का संकेत है, तो एजेंसी आउटलुक को डाउनग्रेड करते हुए उसे वापस ‘स्टेबल’ कर सकता है।
वित्त वर्ष 25 के लिए अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार का लक्ष्य वित्त वर्ष 24 के 5.8 फीसदी से घटाकर वित्त वर्ष 25 में 5.1 फीसदी के स्तर पर लाना है।
राजकोषीय घाटा वास्तव में सरकारी खर्च और राजस्व के बीच का अंतर होता है। न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, सीजीए (कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स) की तरफ से 31 मई को जारी आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी के मुकाबले 5.63 फीसदी रहा, जो केंद्रीय बजट में अनुमानित 5.8 फीसदी से बेहतर है।
वास्तविक संख्या में देखें तो भारत का राजकोषीय घाटा 16.53 लाख करोड़ रुपये रहा है। बेहतर राजकोषीय स्थिति को हासिल करने की दिशा में भारत का लक्ष्य का वित्त वर्ष 26 के लिए घाटे को कम कर 4.5 फीसदी के स्तर पर लाना है, जिसकी घोषणा वित्त वर्ष 21-22 के बजट में की गई थी।
इसी संदर्भ में रेटिंग एजेंसी ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ सरकार को मिलने वाले 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश से घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और इससे भारत के सॉवरेन रेटिंग अपग्रेड की संभावना बेहतर हो सकती है।
बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 25 के लिए आरबीआई ने रिकॉर्ड 2.11 लाख करोड़ रुपये के लाभांश की घोषणा की है, जो वित्त वर्ष 24 में मात्र 87,416 करोड़ रुपये था। इस लाभांश से सरकार को अपनी राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी। यहां यह याद रखना जरूरी है कि सरकार ने वित्त वर्ष 24 के 5.8 फीसदी के मुकाबले वित्त वर्ष 25 में घाटे को कम कर 5.1 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। इस लाभांश की वजह से सरकार को बाजार से कम उधारी लेनी होगी , जिसका फायदा उसे कम कर्ज लागत के तौर पर मिलेगा।
एजेंसी की रिपोर्ट में भारत के लिए सॉवरेन रेटिंग शब्द का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में हमारे सामने यह सवाल आता है रेटिंग एजेंसियां कितनी तरह की रेटिंग का इस्तेमाल करती हैं और इन्हें तय कैसे किया जाता है और इसके मतलब क्या होते हैं?
एसएंडपी के मामले में देखें तो एजेंसी मुख्य तौर पर चार श्रेणियों में रेटिंग देती है:
1. गैर वित्तीय कॉरपोरेट संस्थाएं
2. बीमा कंपनियां
3. सॉवरेन (संप्रभु सरकारें और मौद्रिक संस्थाएं)
4.वित्तीय संस्थाएं
देशों या अर्थव्यवस्थाओं की रेटिंग सॉवरेन के तहत आती हैं, जिसे आम बोलचाल की भाषा में सॉवरेन रेटिंग भी कहा जाता है।
इसके तहत एजेंसी संप्रभु सरकारों (राज्य) और मौद्रिक प्राधिकरणों को तय प्रक्रिया के जरिए रेट करती है। एजेंसी की रेटिंग मेथोडोलॉजी के मुाबिक, वह सॉवरेन की परिभाषा एक वैसे राज्य (देश) से है, जो अपनी सरकार का स्वतंत्र रूप से संचालन करती है और इसके लिए वह किसी अन्य संप्रभु देश पर निर्भर नहीं है।
और स्पष्ट शब्दों में समझें तो वैसी सरकार जो अपनी करेंसी को निर्धारित करने में सक्षम होने के साथ साथ राजनीति और राजकोषीय ढांचे को तय करने की क्षमता रखती है।
सॉवरेन रेटिंग का मतलब किसी देश या सरकार की उस क्षमता से होता है, जिसके तहत वह गैर-आधिकारिक (व्यावसायिक) कर्जदाताओं से लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए जवाबदेह होती है। इसलिए इश्यूअर क्रेडिट रेटिंग (आईसीआर) या सॉवरेन रेटिंग का किसी सरकार की अन्य देनदारी से कोई संबंध नहीं होता है।
इन अन्य देनदारियों में शामिल है-
अन्य सरकारें (पेरिस क्लब डेट या अंतरसकारी कर्ज)
आईएमएफ या विश्व बैंक
पीएसयू या अन्य स्थानीय व क्षेत्रीय सरकारें।
एजेंसी की सॉवरेन रेटिंग या देश की साख मुख्य तौर पर पांच कारकों के आकलन से निर्धारित होती है:
1.संस्थागत मूल्यांकन
2.आर्थिक मूल्यांकन
3.बाह्य मूल्यांकन
4.राजकोषीय मूल्यांकन
5.मौद्रिक मूल्यांकन
इसमें एजेंसी इन बातों का आकलन करती है कि कैसे सरकारी संस्थाएं और नीति निर्माण टिकाऊ पब्लिक फाइनैंस मुहैया कराते हुए, संतुलित आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर आर्थिक और राजनीतिक आपातकालीन स्थितियों से मुकाबला करते हुए सॉवरेन क्रेडिट फंडामेंटल्स को प्रभावित करते हैं। साथ ही यह डेटा, प्रक्रियाओं और संस्थानों की पारदर्शिता और जवाबदेही; सॉवरेन कर्ज पुनर्भुगतान की संस्कृति और संभावित बाहरी और घरेलू सुरक्षा जोखिमों पर एजेंसी के नजरिए को दर्शाता है।।
सॉवरेन डिफॉल्ट (किसी अर्थव्यवस्था का कर्ज भुगतान से चूक जाना) का इतिहास यह बताता है कि एक मजबूत, विविध, टिकाऊ और लचीली अर्थव्यवस्था कर्ज चुकाने में ज्यादा सक्षम और मजबूत होती है।
देश का आय स्तर, जिसका मूल्यांकन प्रति व्यक्ति जीडीपी के आधार पर किया जाता है।
विकास की संभावना और
देश की आर्थिक विविधता और उतार-चढ़ाव।
अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में देश की करेंसी का दर्जा या हैसियत
देश की बाह्य तरलता, जो यह बताता है कि अर्थव्यवस्था फॉरेन एक्सचेंज जेरनेशन के मामले में कितनी सक्षम है।
देश की बाह्य स्थिति, जो अन्य देशों के मुकाबले नागरिकों की संपत्ति और देनदारी (विदेशी और स्थानीय दोनों मुद्रा में) के बारे में जानकारी देता है।
यह मुख्य तौर पर देश के घाटे और कर्ज भार की सस्टेनेबिलिटी पर एजेंसी का विचार होता है।
यह इस बात पर एजेंसी का नजरिया होता है कि देश की मौद्रिक संस्थाएं (मिसाल के तौर पर भारतीय संदर्भ में आरबीआई) संतुलित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के साथ किसी भी बड़ी आर्थिक व वित्तीय आपदा को टालते हुए क्या अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर पा रही हैं।
इस मूल्यांकन में मुख्य तौर पर दो बातों का ध्यान रखा जाता है-
एक्सचेंज रेट व्यवस्था और
मौद्रिक नीति की विश्वसनीयता।
इन सभी पांच कारकों को 1-6 के स्केल पर मापा जाता है, जिसमें 1 का मतलब (बेहद मजबूत) और 6 का मतलब (बेहद कमजोर) से होता है और फिर इसके आधार पर रेटिंग ग्रेड को निर्धारित किया जाता है।
AAA – इन्वेस्टमेंट ग्रेड
वित्तीय जवाबदेही को पूरा करने की बेहद मजबूत क्षमता।
AA – इन्वेस्टमेंट ग्रेड
वित्तीय जवाबदेही को पूरा करने की बहुत मजबूत क्षमता।
A -इन्वेस्टमेंट ग्रेड
वित्तीय जवाबदेही को पूरा करने की मजबूत क्षमता लेकिन आर्थिक स्थितियों और स्थितियों में बदलाव को लेकर संदेह।
वित्तीय जवाबदेही को पूरा करने की पर्याप्त क्षमता, जो प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों से प्रभावित हो सकता है। (भारत अभी इसी श्रेणी में है और हालिया आउटलुक अपग्रेड ने इस सॉवरेन रेटिंग अपग्रेड की उम्मीदों को बढ़ा दिया है।)
BB – विचार योग्य ग्रेड
निकट अवधि में कम असुरक्षित, लेकिन प्रतिकूल व्यावसायिक, वित्तीय और आर्थिक स्थितियों के कारण बड़ी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है।
B – विचार योग्य ग्रेड
प्रतिकूल व्यावसायिक, वित्तीय और आर्थिक स्थितियों के प्रति अधिक संवेदनशील लेकिन वर्तमान में वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की क्षमता रखता है।
CCC -विचार योग्य ग्रेड
वर्तमान में असुरक्षित और वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अनुकूल व्यावसायिक, वित्तीय और आर्थिक स्थितियों पर निर्भरता।
CC -विचार योग्य ग्रेड
अत्यधिक संवेदनशील; अभी तक डिफॉल्ट नहीं हुई है, लेकिन निश्चित रूप से ऐसा होने की उम्मीद है।
C – विचार योग्य ग्रेड
वर्तमान में भुगतान न किए जाने की स्थिति अत्यधिक संवेदनशील है और उच्च रेटिंग वाले दायित्वों की तुलना में रिकवरी कम होने की उम्मीद है।
D – विचार योग्य ग्रेड
भुगतान में चूक या वादे को पूरा नहीं किया जाना; दिवालिया याचिका दायर किए जाने पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
एसएंडपी के मुताबिक, ‘AA’ से ‘CCC’ के बीच की रेटिंग को (+) या माइनस (-) के साथ संशोधित किया जाता है।
संस्थागत मूल्यांकन
रेटिंग स्कोर के लिहाज से देखें तो संस्थागत मूल्यांकन में भारत का स्कोर 3 रहा, जिसकी वजह परिपक्व लोकतंत्र, गतिशील मीडिया और मुखर व्यावसायिक समुदाय की मौजूदगी के साथ स्थिर और परिपक्व संस्थाओं की वजह से सत्ता हस्तांतरण की परंपरा रही।
नरेंद्र मोदी सरकार ने जीएसटी जैसे सकारात्मक आर्थिक सुधारों को पेश किया और करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2023 में भारत की रैंकिंग 93/180 रही।
राजकोषीय मूल्यांकन
मजबूती और प्रदर्शन के मामले में स्कोर 6 (बेहद कमजोर) रहा, जो शुद्ध सरकारी कर्ज (जीडीपी के % मुकाबले)में आए बदलाव पर आधारित है। साथ ही राजकोषीय मूल्यांकन:कर्ज बोझ के मामले में स्कोर 6 रहा, जो शुद्ध सरकारी कर्ज (जीडीपी का %) और सामान्य सरकारी ब्याज खर्च (सामान्य सरकारी राजस्व का %) पर आधारित है।
वहीं, मौद्रिक मूल्यांकन के मामले मे स्कोर 3 रहा, जो भारत के स्थिर एक्सचेंज रेट पर आधारित होने के साथ ही आरबीआई के स्वतंत्र परिचालन पर आधारित है। गौरतलब है कि एसएंडपी की इस रिपोर्ट के बाद आरबीआई की सालाना रिपोर्ट 2023-24 सामने आई, जिसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत आउटलुक के साथ वित्त वर्ष 2024-25 में 7 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया गया है।
एसएंडपी की रेटिंग अन्य वैश्विक एजेंसियों मसलन फिच और मूडीज की तरह ही हैं। भारत के मामले में ‘स्टेबल’ आउटलुक के साथ फिच की सॉवरेन रेटिंग ‘BBB-‘ है। वहीं मूडीज की रेटिंग ‘स्टेबल’ आउटलुक के साथ ‘Baa3’ है।
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