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Fact Check : जिला जज की कार पर कांवड़ियों के हमले की यह खबर 2016 की है, हाल की नहीं

विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल पोस्‍ट की जांच की। पता चला कि 2016 की घटना को अब वायरल कर के भ्रम फैलाया जा रहा है।

नई दिल्‍ली (विश्‍वास न्‍यूज)। सावन के महीने में कांवड़ियों की यात्रा जारी है। इसी बीच एक पुरानी खबर को वायरल करते हुए सोशल मीडिया में भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। सोशल मीडिया के अलग-अलग प्‍लेटफार्म पर कुछ यूजर्स एक अखबार की कटिंग को पोस्‍ट करते हुए दावा कर रहे हैं कि कांवड़ियों ने जज सीके कुलश्रेष्‍ठ की कार पर हाल फिलहाल में हमला कर दिया। सोशल मीडिया यूजर्स इसे अभी की घटना बताकर वायरल कर रहे हैं। विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल पोस्‍ट की जांच की। पता चला कि 2016 की घटना को अब वायरल करके भ्रम फैलाया जा रहा है। जुलाई 2016 में अयोध्या से जल लेकर लौट रहे कांवड़ियों ने हाईवे के आरक्षित लेन पर गाड़ियों के आवागमन से खिन्न होकर कप्तानगंज के मुख्य चौराहे पर जमकर बवाल किया था। इसी दौरान लखनऊ जा रहे गोरखपुर के जिला जज सीके कुलश्रेष्ठ की कार भी वहां पहुंच गई, उस पर भी कांवड़ियों ने हमला कर दिया था। वायरल पोस्‍ट में इस्‍तेमाल की गई तस्‍वीर भी उसी दौरान की है।

क्‍या हो रहा है वायरल

फेसबुक यूजर ‘शेर मोहम्‍मद’ ने 13 जुलाई को एक अखबार की क्लिपिंग को पोस्‍ट करते हुए दावा किया, “कांवड़ियों के सामने ज़िला जज क्या होता है लगे रहिए धार्मिक लोगो जो रास्ते में आए उसी को बजाते चलो।”

वायरल पोस्‍ट में इस्‍तेमाल की गई खबर में कुछ कांवड़ियों को बाइक तोड़ते हुए देखा जा सकता है। खबर में बताया गया कि अयोध्‍या से जल लेकर लौट रहे कांवडियों ने हाईवे पर दुकानों में तोड़फोड़ की। इसी दौरान गोरखपुर के जिला जज सीके कुलश्रेष्‍ठ की कार पर भी हमला कर दिया। हमले में कुलश्रेष्‍ठ का सिर फूट गया।

पोस्‍ट के कंटेंट को यहां ज्‍यों का त्‍यों ही लिखा गया है। इसे हाल का मानकर कुछ यूजर्स द्वारा वायरल किया जा रहा है। पोस्‍ट का आर्काइव वर्जन यहां देखें।

पड़ताल

विश्‍वास न्‍यूज ने वायरल पोस्‍ट की जांच के लिए सबसे पहले गूगल ओपन सर्च टूल का इस्‍तेमाल किया। गूगल सर्च करने पर हमें अमर उजाला डॉट कॉम पर एक पुरानी खबर मिली। 31 जुलाई 2016 की इस खबर में बताया गया, “अयोध्या से जल लेकर लौट रहे कांवड़ियों ने कप्तानगंज के मुख्य चौराहे पर जमकर बवाल किया। लखनऊ जा रहे गोरखपुर के जिला जज सीके कुलश्रेष्ठ की कार भी वहां पहुंच गई, उस पर भी कांवड़ियों ने हमला कर दिया। कुछ लोगों ने हिम्मत कर जज को कार से निकाला और दुकान में छिपाकर उनकी जान बचाई। कांवड़ियों ने गोरखपुर में तैनात सीओ सुखवीर सिंह, सीआरओ बस्ती और सीओ कलवारी की नीली बत्ती लगी गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की और कई बाइक भी तोड़ दीं। आधे घंटे तक चौराहे पर अराजकता की स्थिति बनी रही।” संबंधित खबर को यहां पढ़ा जा सकता है।

यह तस्‍वीर अमर उजाला की वेबसाइट पर 31 जुलाई 2016 की खबर में इस्‍तेमाल की गई है।

इसी खबर के अंदर हमें वायरल पोस्‍ट में इस्‍तेमाल की गई तस्‍वीर भी मिली। इस तस्‍वीर में कांवड़ियों को एक बाइक पर हमला करते हुए देखा जा सकता है। यह तस्‍वीर भी सात साल पुरानी साबित हुई।

कांवड़ियों की यह तस्‍वीर अमर उजाला की वेबसाइट पर 31 जुलाई 2016 की खबर में इस्‍तेमाल की गई है।

पड़ताल के दौरान आईनेक्‍स्‍ट लाइव डॉट कॉम की वेबसाइट पर 31 जुलाई 2016 की एक खबर मिली। इसमें बताया गया कि बस्‍ती के कप्‍तानगंज कस्‍बे में कांवड़ियों ने सड़क पर तोड़फोड़ की। उसी समय गोरखपुर के जिला जज चैतन्य कुमार कुलश्रेष्ठ मीटिंग के लिए लखनऊ जा रहे थे। उनके साथ एसीजेएम डीपी सिंह भी थे। कांवड़ियों ने जिला जज की गाड़ी में तोड़फोड़ शुरू कर दी। कार का शीशा टूटकर लगने से जिला जज के गले की नश में चोट लगी। हालात काबू करने पहुंची भारी पुलिस फोर्स ने जिला जज को सीएचसी पहुंचाया। पूरी खबर यहां पढ़ें।

विश्‍वास न्‍यूज ने जांच को आगे बढ़ाते हुए गोरखपुर के वर्तमान जिला जज के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। जिला कोर्ट की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, तेज प्रताप तिवारी वर्तमान में गोरखपुर के जिला एवं सत्र न्‍यायालय के जिला जज हैं।

विश्‍वास न्‍यूज ने बातचीत में दैनिक जागरण, गोरखपुर, के संपादकीय प्रभारी मदन मोहन सिंह ने बताया कि वर्तमान में गोरखपुर के जिला जज तेज प्रताप तिवारी हैं, कई साल पुरानी घटना को अब वायरल किया जा रहा है।

पड़ताल के अंतिम चरण में पुरानी खबर को अब वायरल करने वाले यूजर की जांच की गई। फेसबुक यूजर ‘शेर मोहम्‍मद’ राजस्‍थान के अलवर के रहने वाले हैं।

निष्‍कर्ष : विश्‍वास न्‍यूज की पड़ताल में वायरल पोस्‍ट भ्रामक साबित हुई। सात साल पुरानी खबर को कुछ लोग अभी का समझकर वायरल कर रहे हैं।

  • Claim Review : कांवड़ियों ने जिला जज पर किया हमला
  • Claimed By : फेसबुक यूजर शेर मोहम्‍मद
  • Fact Check : भ्रामक
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