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Fact Check : WHO नहीं, बल्कि ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ की बैठक की है यह वीडियो

विश्वास न्यूज की पड़ताल में सामने आया है कि इस पोस्ट में WHO के नाम का इस्तेमाल गलत तरीके से किया गया है। इसके दावे भ्रामक हैं।

  • By: Pragya Shukla
  • Published: Dec 28, 2022 at 03:36 PM
  • Updated: Dec 28, 2022 at 04:20 PM
World Doctors Alliance Fact Check

नई दिल्ली (विश्वास न्यूज)। देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच गलत खबरों ने भी दस्तक दे दी है। सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह की पोस्ट वायरल होना शुरू हो गई हैं।  इसी बीच कोरोना वायरस के बारे में बातचीत करते एक ग्रुप का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना पर यूटर्न ले लिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कोरोना संक्रमण एक मौसमी बीमारी है। इसमें दूरी बनाए रखने, संक्रमित मरीजों को आइसोलेट, क्वारंटाइन करने या सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत नहीं है। 

विश्वास न्यूज ने अपनी पड़ताल में पाया कि वायरल वीडियो का विश्व स्वास्थ्य संगठन से कोई संबंध नहीं है। वीडियो में दिख रहे लोग हेल्थकेयर प्रोफेशनल से जुड़े हुए हैं और यह वीडियो ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ संगठन के एक कार्यक्रम का है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरल दावे को गलत बताया है। 

क्या है वायरल पोस्ट में ?

फेसबुक यूजर विमल देव बोध ने वायरल वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है। ब्रेकिंग न्यूज़: डबल्यू.एच.ओ ने अपनी गलती मानी पूरी तरह से यू-टर्न लेते हुए कहा है कि कोरोना एक सीजनल वायरस है यह मौसम बदलाव के दौरान होने वाला खांसी जुकाम गला दर्द है इससे घबराने की जरूरत नहीं। डब्ल्यू.एच.ओ अब कहता है कि कोरोना रोगी को न तो अलग रहने की जरूरत है और न ही जनता को सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत है। यह एक मरीज से दूसरे व्यक्ति में भी संचारित नहीं होता। देखिये WHO की प्रैस कांफ्रेंस।”…..     

पोस्ट के आर्काइव वर्जन को यहां क्लिक कर देखा जा सकता है।

पड़ताल 

वायरल वीडियो की सच्चाई जानने के लिए हमने सबसे पहले वीडियो को गौर से देखा और सुना। हमने पाया कि वीडियो की शुरुआत में एक महिला खुद को प्रोफेसर डोलोरेस काहिल बताती है। इसी से हिंट लेते हुए हमने गूगल पर प्रोफेसर डोलोरेस काहिल के बारे में सर्च करना शुरू किया। इस दौरान हमें बता चला कि वो ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ संस्था से जुड़ी हुई हैं। साथ ही सर्च करने पर हमने पाया कि वीडियो में नजर आ रहे अन्य लोग भी ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ संस्था से जुड़े हुए हैं।

वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ की  वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, ब्रिटिश-पाकिस्तानी डॉक्टर मोहम्मद आदिल इस संस्था के संस्थापक है। ब्रिटिश-पाकिस्तानी डॉक्टर मोहम्मद आदिल के लाइसेंस को यूके की जनरल मेडिकल काउंसिल ने रद्द कर दिया है, क्योंकि उन्होंने कोरोना वायरस महामारी को एक साजिश बताया था और वो कोरोना को लेकर लोगों के बीच भ्रम फैलाते हुए पाए गए थे। 

इस संस्था से जुड़े एक अन्य डॉक्टर हेइको शॉनिंग को मध्य लंदन में कोरोना को लेकर गलत जानकारी देने और भ्रम फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सर्च करने पर हमें यह वीडियो ‘वर्ल्ड डॉक्टर्स अलायंस’ की वेबसाइट पर भी मिला।

विश्वास न्यूज ने इस वायरल पोस्ट में किए गए दावे को अलग-अलग हिस्सों में बांट कर उनकी पड़ताल की।

पहला दावा – 

कोरोना से संक्रमित से दूरी बनाए रखने, उन्हें क्वारंटाइन करने और आइसोलेट करने की जरूरत नहीं है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, कोरोना एक फैलने वाली बीमारी है। ऐसे में अगर कोई शख्स कोरोना से संक्रमित है तो उससे दूरी बनाए रखना जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार, कोविड-19 के संपर्क में आने की आशंका वाले लोगों को दूसरे लोगों के संपर्क में आने से बचाने के लिए क्वारंटाइन रखा जाता है।

कोरोना से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और सेनेटाइजर के इस्तेमाल को अनिवार्य बताया है। सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और भारत सरकार ने भी कोरोना के बचाव के लिए इन्हीं उपायों को जरूरी बताया है।

दूसरा दावा – 

कोरोना वायरस नहीं, बल्कि मौसमी बीमारी है।


डब्लूएचओ के मुताबिक,  कोरोना वायरस (CoV) का एक बड़ा परिवार है, जो सामान्य सर्दी से लेकर MERS-CoV और SARS-CoV जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनता है।” 

नोवेल कोरोनावायरस इस परिवार का एक नया हिस्सा है। संक्रमण के मामले में यह अन्य वायरस से कई मामलों में अलग है। इसमें हल्के लक्षणों से लेकर गंभीर लक्षण तक होते हैं। इस वायरस से पीड़ित गंभीर रोगियों की मौत भी हो सकती है। इस वायरस से पीड़ित गंभीर रोगियों को उचित देखभाल और बचाव के लिए अस्पताल में भर्ती करने से लेकर गहन देखभाल, ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है। जैसा कि भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर में देखा गया, ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों लोग संक्रमित हुए और तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका। वहीं, दूसरी ओर सामान्य सर्दी जानलेवा नहीं होती है। कोविड-19 वायरस को मौसम प्रभावित नहीं करता है। हालांकि, अभी भी इस वायरस को लेकर रिसर्च जारी है। 

तीसरा दावा – 

90 फीसदी लोग फॉल्स पॉजिटिव हैं।

न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नाक और गले से लिए गए नमूने में SARS COV 2-Z का RT-PCR पता लगाने की विशिष्टता 98% है। 100 में से केवल 2 सैंपल ही गलत-सकारात्मक परिणाम देंगे। आरटी-पीसीआर सीरीज का इस्तेमाल पिछले साल ही कोविड-19 मॉडल टेस्ट में हुआ है।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन में RT-PCR फॉल्स पॉजिटिव रिजल्ट्स की रेंज 0.8 से 4 फीसदी के बीच है, जबकि फॉल्स नेगेटिव 33 फीसदी तक हो सकते हैं।

भारत सरकार की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में कोरोना से संक्रमित हुए लोगों की संख्या 4,46,77,647 है, जबकि 5,30,696 लोगों की कोरोना के कारण मौत हो चुकी है।  अगर सच में 90 फीसदी लोग फॉल्स पॉजिटिव हैं, तो ये आंकड़ा इतना बड़ा नहीं होता।

चौथा दावा

मास्क और वैक्सीन जरूरी नहीं। 

हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि कोरोना वायरस एक संक्रामक बीमारी यानी फैलने वाली बीमारी है। इससे बचाव करने के लिए मास्क बेहद जरूरी है। अब बात अगर वैक्सीन की करें तो, डब्लूएचओ और भारत सरकार के मुताबिक, वैक्सीन कोरोना से बचाने में सुरक्षित और प्रभावी होते हैं। वैक्सीन प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।

विश्वास न्यूज ने वायरल दावे को लेकर डब्ल्यूएचओ की प्रवक्ता शर्मिला शर्मा से बातचीत की। उन्होंने हमें बताया, “यह दावा पूरी तरह से फेक है।”

हमने पहले भी इस दावे का फैक्ट चेक किया है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

पड़ताल के अंत में भ्रामक पोस्‍ट करने वाले यूजर की जांच की गई। पता चला कि फेसबुक यूजर एक विचारधारा से प्रभावित है और यूजर के फेसबुक पर 5 हजार मित्र हैं। 

निष्कर्ष: विश्वास न्यूज की पड़ताल में सामने आया है कि इस पोस्ट में WHO के नाम का इस्तेमाल गलत तरीके से किया गया है। इसके दावे भ्रामक हैं।

  • Claim Review : WHO ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा घबराने की जरूरत नहीं है, कोविड-19 एक मौसमी बीमारी है।
  • Claimed By : विमल देव बोध
  • Fact Check : झूठ
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